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स्थानान्तगोशालखरशालात्
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....स्थेयाख्ययोः
स्थानान्तगोशालखरशालात् – IV. iii. 35 ...स्थिर...- VI. iv. 157
स्थान अन्त वाले.गोशाल एवं खरशाल प्रातिपदिकों देखें-प्रियस्थिरo VI. iv. 157 से (भी जातार्थ में उत्पन्न प्रत्यय का लुक् होता है)। स्थिर:- VIII. 1. 93 स्थानान्तात्-v. iv. 10
(गवि तथा युधि से उत्तर) स्थिर शब्द के (सकार को स्थानशब्दान्त प्रातिपदिक से विकल्प से छ प्रत्यय होता मूर्धन्य आदेश होता है)। है, यदि सस्थान = तुल्य से स्थानान्त अर्थवत् हो तो)। स्थिरे-III. iii. 17 स्थानिनः -II. iii. 14
(स धातु से) चिरस्थायी कर्ता वाच्य होने पर (पञ् प्रत्यय (क्रियार्थ क्रिया उपपद में है जिसके,ऐसी) अप्रयुज्यमान होता है)। धातु के (अनभिहित कर्मकारक में चतुर्थी विभक्ति होती ...स्थूल...-III. ii. 56
देखें- आढ्यसुभग III. ii.56 स्थानिनि-1. iv. 104
...स्थूल... - VI. ii. 168 (युष्मद शब्द के उपपद रहते समान अभिधेय होने पर देखें- अव्ययदिक्शब्दO VI. ii. 168 युष्मद् शब्द का प्रयोग न हो (या हो तो भी मध्यम पुरुष स्थूल...- VI. iv. 156 होता है)।
देखें-स्थूलदूर० VI. iv. 156 स्थानिवत्-I.i.55
स्थूल... - VII. ii. 20 (आदेश) स्थानी के सदृश माना जाता है.(वर्णसम्बन्धी देखें- स्थूलबलयोः VII. ii. 20 कार्य को छोड़कर)।
स्थूलदूरयुवहस्वक्षिप्रक्षुद्राणाम्-VI. iv. 156 स्थाने-1.1.49
स्थूल, दूर, युव, हस्व, क्षिप्र, क्षुद्र-इन अङ्गों का (पर - स्थान में प्राप्यमाण (आदेशों में जो स्थानी के सबसे जो यणादिभाग,उसका लोप होता है; इष्ठन.इमनिच तथा अधिक समान हो, वह आदेश हो)।
ईयसुन् परे रहते तथा उस यणादि से पूर्व को गुण होता स्थाने-VII. ii. 46
(यकार तथा ककार पूर्व वाले आकार के स्थान में (जो स्थूलबलयो:- VII. ii. 20 प्रत्ययस्थित ककार से पूर्व अकार,उसके स्थान में उदीच्य (दृढ शब्द निष्ठा परे रहते) स्थूल = मोटा तथा बलवान् आचार्यों के मत में इकारादेश नहीं होता)।
अर्थ में (निपातन किया जाता है) स्थानेयोगा-I.1.48
स्थूलादिभ्यः- V. iv.3 (यदि अष्टाध्यायी में अनियतयोगा षष्ठी कहीं हो तो स्थूलादि प्रातिपदिकों से (प्रकार-वचन' गम्यमान हो उसे) स्थान के साथ योग = सम्बन्ध वाला मानना तो कन् प्रत्यय होता है)। चाहिये।
स्थे-VI. 1. 19 ...स्थाम्- VII. iv.40 -
स्थ शब्द के उत्तरपद रहते (भी भाषाविषय में सप्तमी देखें-धतिस्यति VII. iv. 40
का अलुक् नहीं होता है)। स्थालीबिलात्-v.i.69
(द्वितीयासमर्थ) स्थालीबिल प्रातिपदिक से (समर्थ है। स्थेण्कृज्वदिचरिहुतमिजनिभ्यः -III. iv. 16 अर्थ में छ और यत् प्रत्यय होते हैं)।
(क्रिया के लक्षण में वर्तमान) स्था, इण, कृववदि,चरि, स्थालीबिल = पकाने वाले पात्र का भीतरी हिस्सा।।
हु,तमि तथा जनि धातुओं से (वेदविषय में तोसुन प्रत्यय स्थास्तम्भो:- VIII. iv.60
होता है)। (उत् उपसर्ग से उत्तर) स्था तथा स्तम्भ को (पर्वसवर्ण ...स्थेयाख्ययोः -I. iii. 23 आदेश होता है)।
देखें-प्रकाशनस्थेयाख्ययोः I. 1. 23 :