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सुखादिया
सु...-VII.1.68
दाम् VII. 1. 68 ..सु...-VII. 1.9
VILL9
...सि.. - VIII. 1.70
देखें-सेवसित VIII. 1.70 ...सि..- VIII. IH. 116
देखें-स्तम्भूसिवसहाम् VIII. III. 116 ...सिंह...-VI. II. 72
देखें-गोविडाल.VI. 1.72 ...सीता...-V..91
देखें-नौक्योधर्म IV.v.91 ...सीदा-VII. HI.78
देखें-पिजिन VII. III. 78 ...सीरनाम..-VI. 1. 187
देखें-स्किंगपूत. VI. II. 187 ...सीरात्-IV.III. 123
देखें-हलसीरात् IV. 1. 123 ...सीरात्-IV.iv.81
देखें-हलसीरात् IV.iv81 सीयुद्-III. V. 102
(लिङ् के आदेशों को) सीयुट् आगम होता है। ...सीयुट्..-VI. 15.62
देखें-स्यसि VI. iv.62 सु...-III. I.89
देखें-सुकर्म III. 1.9 सु..-III. II. 103
देखें- सुययोः III. II. 103 सु..-IV.1.2
देखें- स्वौजसमौट IV. 1.2 सु...-V. iv. 125
देखें-सुहरित V. iv. 125 ...सु...-v.iv. 135
देखें-उत्पूतिo v. iv. 135, सु...-VI.1.66
देखें-सुतिसि VI.1.66 सु...-VI. 1. 145
देखें- सूपमानात् VI. II. 145 सु...-VII.1.23 .देखें-स्वमो: VII.1.23 सु...-VII.1.39 देखें-सुलक VII. 1.39
देखें-तितु VII. 1.9
-VII. 1.72 देखें-स्तुसुधूश्य: VII. 1.72 सु...-VII. . 12
देखें- सुसर्वार्धात् VII. Iii. 12 सु...-VIII. 1.88
देखें- सुविनिर्दुर्घ्य: VIII. II. 88 .. सुः-I.iv.93
सु शब्द (कर्मप्रवचनीय और निपातसंज्ञक होता है,पूजा .. अर्थ में)। ...सुकरम्-V.1.92
देखें- परिजय्यलभ्यः V. 1. 92 . सुकर्मपापमापुण्येषु-II. 1. 89
सु, कर्म,पाप, मन्त्र, पुण्य -इन (कमों) के उपपद रहते (कृ धातु से भूतकाल में क्विप् प्रत्यय होता है)। ...सुख..-II.1.35
देखें-तदर्थार्थवलिहित II.1.35 सुख...-V.in.63
देखें-सुखप्रियात् V. . 63 सुख..-VI. 1. 15 .
देखें- सुखप्रिययो: VI. II. 15 सुखप्रिययो:-VI. II. 15 . हितवाची तत्पुरुष समास में) सुख तथा प्रिय शब्द उत्तरपद रहते (पूर्वपद को प्रकृतिस्वर हो जाता है)। सुखप्रियात्- V. iv. 63
(अनुकूलता' अर्थ में वर्तमान) सुख तथा प्रिय प्रातिपदिकों से (कृञ् के योग में डाच् प्रत्यय होता है)। . ..सुखयो:- VIII. 1. 13
देखें-प्रियसुखयोः VIII. 1. 13 सुखादिभ्यः - III.1.18
सुख आदि (कर्मवाचियों) से (अनुभव अर्थ में क्यङ् प्रत्यय होता है,यदि वे सुख आदि वेदयिता-कर्ता सम्बन्धी हों तो अर्थात् जिसको सुख हो, अनुभव करने वाला भी वही हो)।