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सम्...
सम्... - III. 1. 69
देखें- समुदो: III. iii. 69
.... सम्... - IV. 1. 115
देखें- संख्यासंभव IV. 1. 115
सम्... - V. 1. 28.
देखें- सम्प्रोदश्व Vii. 28
.... सम्... - V. Iv. 79
देखें अवसमन्येभ्यः V. iv. 79
सम्... - VI. 1. 132
देखें - सम्परिभ्याम् VI. 1. 132
सम्... - VII. 1. 24
देखें - सन्निविष्यं VII. ii. 24
... सम्... - VIII. 1. 6
देखें- प्रसमुपोदः VIII. 1. 6
... सम... - II. 1. 30
देखें- पूर्वसदृशसमोनार्थ II. 1. 30
... सम... - IV. Iv. 91
देखें - तार्यतुल्यo IV. iv. 91
सम: - I. 111.29
सम् उपसर्ग से उत्तर (अकर्मक गम् तथा ऋच्छ् धातुओं से आत्मनेपद होता है)।
सम्:- I lil. 53
सम् उपसर्ग से उत्तर (गृ धातु से आत्मनेपद होता है, स्वीकार करने अर्थ में) ।
सम: - I iii. 54
से
(तृतीया विभक्ति से युक्त) सम्-पूर्वक (चर् धातु) (आत्मनेपद होता है)।
सम:- 1. 111.65
सम् उपसर्ग से उत्तर (क्ष्णु तेजने' धातु से आत्मनेपद होता है)।
सम:- VI. 1. 92
सम् को (समि आदेश होता है, व-प्रत्ययान्त अञ्जु धातु के उत्तरपद रहते ।
सम: - VIII. 1. 5
सम् को (रु होता है, सुट् परे रहते, संहिता-विषय में) ।
532
सम:- VIII. iii. 25
सम् के (मकार को मकारादेश होता है, क्विप्-प्रत्ययान्त राजू धातु के परे रहते ।
समर्थाभ्याम्
समज... - III. iil. 99 देखें- समजनिषदo III. iii. 99 समजनिषदनिपतमनविदशीत्रिणः - III. III. 99 (सञ्ज्ञाविषय में) सम्-पूर्वक अज, निपूर्वक सद, तथा पत, मन, विद, षुञ, शीङ, भृञ तथा इण् धातुओं से (स्त्रीलिङ्ग में कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में क्यप् प्रत्यय होता है)।
... समम् - VI. ii. 121
देखें - कूलतीर VI. ii. 121
... समय... - III. iii. 167
देखें - कालसमयवेलासु III. 1. 167
समय:- V. 1. 103
(प्रथमासमर्थ) समय प्रातिपदिक से (षष्ठ्यर्थ में यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक प्राप्त समानाधिकरणवाला हो तो)।
समयात् - Viv. 60
( बिताना' अर्थ गम्यमान हो तो) समय प्रातिपदिक से ( भी डाच् प्रत्यय होता है, कृञ् के योग में) ।
समर्थ:- II. 1. 1
(पदों की विधि) समर्थ = परस्पर सम्बद्ध अर्थ वाले (पदों की होती है)।
समर्थयो:
:- II. iii. 57
समानार्थक व्यवह और पण् धातुओं के (कर्म कारक में शेष विवक्षित होने पर षष्ठी विभक्ति होती है) ।
समर्थयो:- III. iii. 152
समानार्थक (उत, अपि) उपपद हों तो (धातु से लिङ् प्रत्यय होता है)।
समर्थानाम् – IV. 1. 82
[यहाँ से लेकर 'प्राग्दिशो विभक्तिः' (5.3.1) तक कहे जाने वाले प्रत्यय] समर्थों में (जो प्रथम, उनसे विकल्प से होते हैं।
समर्थाभ्याम् – IIII. 42
-
समान = तुल्य अर्थ वाले (प्र तथा उप उपसर्ग) से उत्तर (क्रम् धातु से आत्मनेपद होता है)।