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सन्वत्
सन्वत् - VII. Iv. 93
(चङ्परकणि के परे रहते अङ्ग के अभ्यास को लघु धात्वक्षर परे रहते) सन् के समान कार्य होता है, (यदि अङ्ग के अक् प्रत्याहार का लोप न हुआ हो तो)। सन्लिटो:- VII. iii. 57
(अभ्यास से उत्तर जि अङ्ग को) सन् तथा लिट् परे रहते (कवर्गादेश होता है)।
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सपने - IV. 1. 145
(प्रातृ शब्द से) सपत्न अर्थात् शत्रु वाच्य हो (तो व्यन् प्रत्यय होता है)।
सपल्यादिषु - IV. 1. 35
सपल्यादियों में (जो पति शब्द उससे स्त्रीलिङ्ग ङीप् प्रत्यय तथा नकारादेश नित्य ही में हो जाता है)
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सपत्र... - Viv. 61
देखें- सपत्रनिष्पत्रात् V. iv. 61
पत्रनिष्पत्रात् - Viv. 61
सपत्र तथा निष्पत्र प्रातिपदिकों से (अपीडन' गम्यमान हो तो कृञ् के योग में डाच् प्रत्यय होता है) । सपिण्डे - IV. 1. 165
(भाई से अन्य) सात पीढियों में से कोई (पद तथा आयु दोनों में बूढ़ा व्यक्ति जीवित हो तो पौत्रप्रभृति का जो अपत्य उसके जीते ही विकल्प से युवा संज्ञा होती है, पक्ष में गोत्रसंज्ञा) ।
पूर्वपदात् - V. 1. 111
विद्यमान है पूर्वपद जिसके, (ऐसे प्रयोजन समानाधिकरणवाची प्रथमासमर्थ समापन प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में छ प्रत्यय होता है)।
पूर्वस्य - IV. 1. 34
जिसके पूर्व में कोई शब्द विद्यमान हो, (ऐसे पतिशब्दान्त अनुपसर्जन) प्रातिपदिक को (स्त्रीलिङ्ग में ङीप् प्रत्यय विकल्प से हो जाता है, ङीप् न होने पर नकारादेश भी नहीं होगा) ।
पूर्वात् - V. 11.87
विद्यमान है पूर्व में कोई शब्द जिस (पूर्व) प्रातिपदिक ऐसे (प्रथमासमर्थ पूर्व) शब्द से (भी 'इसके द्वारा' अर्थ में इन प्रत्यय होता है)।
सपूर्वाया:- VIII. 1. 27
विद्यमान है पूर्व में कोई (पद) जिससे, ऐसे (प्रथमान्त पद) से उत्तर (षष्ठ्यन्त, चतुर्थ्यन्त तथा द्वितीयान्त युष्मद् अस्मद् शब्दों को विकल्प से वाम्, नौ आदि आदेश नहीं होते) ।
... सप्तति... - V. 1. 58
देखें- पंक्तिविंशतिo V. 1. 58
सप्तन:- V. 1. 60
सप्तमी
(परिमाण समानाधिकरणवाले) प्रथमासमर्थ सप्तन् प्रातिपदिक से (षष्ठ्यर्थ में अज् प्रत्यय होता है, वेदविषय में, वर्ग अभिधेय होने पर) ।
सप्तमी - II. 1. 39
सप्तमीविभक्त्यन्त सुबन्त (शौण्ड इत्यादि समर्थ सुबन्तों के साथ विकल्प से समास को प्राप्त होता है और वह तत्पुरुष समास होता है)।
सप्तमी... - II. 1. 35
देखें- सप्तमीविशेषणे II. ii. 35 सप्तमी... - II. iii. 7
देखें- सप्तमीपञ्चम्यौ II. iii. 7 सप्तमी - II. iii. 9
( जिससे अधिक हो और जिसका ईश्वरवचन हो, उस कर्मप्रवचनीय के योग में) सप्तमी विभक्ति होती है। सप्तमी - II. iii. 36
(अनभिहित अधिकरण कारक में और दूरार्थक तथा अन्तिकार्थक शब्दों से) सप्तमी विभक्ति होती है। सप्तमी - II. iii. 43
(साधु और निपुण शब्द के योग में) सप्तमी विभक्ति होती है, (यदि प्रति का प्रयोग न हो और अर्चा गम्यमान होतो) ।
सप्तमी... - V. iii. 27
देखें- सप्तमीपञ्चमीप्रथमाभ्य: V. iii. 27
... सप्तमी... - VI. ii. 2
देखें - तुल्यार्थतृतीयाo VI. il. 2 सप्तमी - VI. 11. 32
(सिद्ध, शुष्क, पक्व तथा बन्ध शब्दों के उत्तरपद रहते अकालवाची) सप्तम्यन्त पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है) ।