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सब्ज्ञायाम्
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सज्ञायाम्
सज्ञायाम् -II. iv. 20
संज्ञा-विषय में (न तथा कर्मधारयवर्जित कन्थान्ततत्पुरुष नपुंसकलिङ्ग में होता है, यदि वह कन्था उशीनर जनपद-सम्बन्धी हो तो)। सज्ञायाम्-III. ii. 14
संज्ञा-विषय में (शम्' उपपद रहते धातु मात्र से अच्' प्रत्यय होता है)। सज्ञायाम्-III. ii. 46
संज्ञाविषय में (भू, तु, वृ, जि, धू, सह, तप और दम् धातुओं से यथासम्भव सुबन्त अथवा कर्म उपपद रहते 'खच्' प्रत्यय होता है)। सज्ञायाम्-III. ii. 88
संज्ञाविषय में (उपसर्ग उपपद रहते भी 'जन्' धातु से 'ड' प्रत्यय होता है, भूतकाल में)। सज्ञायाम्-III. ii. 185
(पूज् धातु से) संज्ञा गम्यमान हो तो (करण कारक में इत्र प्रत्यय होता है, वर्तमान काल में)। सप्तायाम्-III. iii. 19 (कर्तृभिन्न कारक में भी धातु से) संज्ञाविषय में (घञ् प्रत्यय होता है)। सज्ञायाम्-III. iii.99 .
संज्ञाविषय में (सम् पूर्वक अज,नि पूर्वक पद तथा पत, मन,विद,षुज,शी, भृज,इण धातुओं से स्त्रीलिङ्ग में कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में क्यप् प्रत्यय होता है और वह उदात्त होता है)। सज्ञायाम्-III. iii. 109
संज्ञाविषय में (धातु से स्त्रीलिङ्ग में कर्तभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में ण्वुल प्रत्यय होता है)। सज्ञायाम्-III. iii. 118
(धातु से करण और अधिकरण कारक में पुंल्लिङ्ग में प्रायः करके घ प्रत्यय होता है, यदि समुदाय से) संज्ञा प्रतीत होती है। सज्ञायाम्-III. iii. 174
(आशीर्वाद-विषय में धातु से क्तिच् और क्त प्रत्यय भी होते हैं, यदि समुदाय से) संज्ञा प्रतीत हो।
सजायाम्-III. iv. 42
संज्ञाविषय में (बन्ध धातु से णम् सज्ञायाम् - Iv.i.58
(नखशब्दान्त तथा मखशब्दान्त प्रातिपदिकों से) संज्ञा विषय में (स्त्रीलिङ्ग में ङीष् प्रत्यय नहीं होता है)। सज्ञायाम्- IV. 1.67
(बाहु अन्त वाले प्रातिपदिकों से) संज्ञाविषय में (स्त्रीलिङ्ग में ऊङ् प्रत्यय होता है)। सजायाम्-IV. 1.72
संज्ञाविषय हो तो (लोक में भी कद् और कमण्डलु शब्दों से स्त्रीलिङ्ग में ऊङ् प्रत्यय होता है। सजायाम्-IV. .5
(तृतीयासमर्थ नक्षत्रवाची श्रवण तथा अश्वत्थ शब्दों से 'युक्तः कालः' इस अर्थ में विहित प्रत्यय का) संज्ञाविषय में (सर्वत्र लुप् होता है)। सजायाम्- IV. iii. 27
(सप्तमीसमर्थ शरद प्रातिपदिक से जात अर्थ में) संज्ञाविषय होने पर (वुञ् प्रत्यय होता है)। . सजायाम्- IV. iii. 117 (तृतीयासमर्थ कुलालादि प्रातिपदिकों से) संज्ञा गम्यमान होने पर (कृत अर्थ में वुञ् प्रत्यय होता है)। सजायाम्- IV. iii. 144
(षष्ठीसमर्थ पिष्ट प्रातिपदिक से) संज्ञाविषय में (विकार अर्थ में कन् प्रत्यय होता है)। सजायाम्- IV. iv. 46
द्वितीयासमर्थ ललाट तथा कुक्कुटी प्रातिपदिकों से) संज्ञा गम्यमान होने पर(देखता है'- अर्थ में ठक प्रत्यय होता है)।
कुक्कुटी = दम्भ, पाखण्ड । सजायाम् - IV. iv. 82
(द्वितीयासमर्थ जनी प्रातिपदिक से) संज्ञा गम्यमान होने पर (ढोता है' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है)। जनी = वधू।