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वृद्भ्यः
जाने वाला द्रव्य, 'आय' = जमींदारों का भाग, 'लाभ' = द्रव्य, 'शुल्क' राजा का ये (दिया जाता है' क्रिया ये (दिया जाता है' क्रिया
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मूलद्रव्य के अतिरिक्त प्राप्य भाग तथा 'उपदा' घूस के कर्म हो तो)।
वृद्भ्यः - I. iii. 92
वृतादि धातुओं से (विकल्प से परस्मैपद होता है. स्य और सन् प्रत्ययों के परे होने पर) ।
वृद्भ्यः - VII. 1. 59
वृतु इत्यादि (चार) धातुओं से उत्तर (सकारादि आर्धधातुक को परस्मैपद परे रहते इट् का आगम नहीं होता) |
... वृधु ... III. ii. 136
देखें- अलंकृञ् III. 1. 136
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....वृन्दाः - VI. iv. 157
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देखें - प्रस्थस्फo VI. iv. 157
वृन्दारक... - 11.1.61
देखें वृन्दारकनागकुञ्जरैः II. 1. 61 वृन्दारकनागकुञ्जरैः II. 1. 61
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(पूज्यमानवाची सुबन्त) वृन्दारक, नाग, कुञ्जर इन (समानाधिकरण सुबन्त शब्दों के साथ (विकल्प से समास को प्राप्त होता है और वह तत्पुरुष समास होता है)।
... वृन्दारकाणाम् - VI. Iv. 157
देखें प्रियस्थिर० VI. Iv. 157
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- वृष्य - VI. I. 102
देखें - ० VI. I. 102
... वृश्चति... - VI. 1. 16
देखें - प्रहिज्या० VI. 1. 16
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वृष... - III. iii. 96
देखें वृक्पच III. 1. 96
... वृष...
-III. ii. 154
देखें - लचपत० III. 1. 154
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... वृष... - V. iv. 145
देखें - अग्रान्तo Viv. 145
.. वृष... - VII. 1. 51
देखें - अश्वक्षीर० VII. 1. 51
वृषण्यति - VII. iv. 37
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(दुरस्यु, द्रविणस्य) वृषण्यति (रिषण्यति ये) शब्द क्यच्प्रत्ययान्त (वेदविषय में) निपातित (किये जाते हैं)।
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वृषाकपि... - IV. 1. 37 देखें वृषाकप्यग्नि० IV. 1. 37 वृषाकप्यग्निकुसितकुसीदानाम् - IV. 1. 37
वृषाकपि, अग्नि, कुसित, कुसीद इन अनुपसर्जन प्रातिपदिकों को (स्त्रीलिङ्ग में उदात्त ऐकारादेश हो जाता है तथा डीप् प्रत्यय होता है)।
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वृषादीनाम्
वृषादि शब्दों के (भी आदि को उदात्त होता है)।
.. वृषि... - VI. iii. 115
देखें नहिवृति०] VI. III. 115 वृषेषपचमनविदभूवीराः - III. iii. 96
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(मन्त्रविषय में) वृष, इष, पच, मन, विद, भू, ची तथा रा धातुओं से (स्त्रीलिङ्ग भाव में क्तिन् प्रत्यय होता है और वह उदात्त होता है)।
वृष्णो
- VI. 1. 197
.. वृषो: - III. 1. 120
देखें कृषोः III. 1. 120
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... वृष्णि... - IVI. 114
देखें ऋयन्धकवृष्णि IV. 1. 114
.. वृष्णिषु - VI. 1. 34
...
देखें
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अन्धकवृष्णिषु VI. 1. 34
- VI. i. 114
'वृष्णो' पद (यजुर्वेद में पठित होने पर अकार परे रहते प्रकृतिभाव से रहता है)।
वृतः - VII. ii. 38
वृ तथा ऋकारान्त धातुओं से उत्तर (इट् को विकल्प से लिद्भिन्न क्लादि आर्धधातुक परे रहते दीर्घ होता है)। वे: - I. iii. 34
( शब्द कर्म वाले) वि उपसर्ग से उत्तर (कृञ् धातु से आत्मनेपद होता है)।
वे: - I. iii. 41
वि उपसर्ग से उत्तर (पादविहरण अर्थ में वर्तमान क्रम् धातु से आत्मनेपद होता है)।
के - V. II. 28
वि उपसर्ग प्रातिपदिक से (स्वार्थ में शालच् तथा शङ्कटच् प्रत्यय होते हैं)।
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वे: - VI. 1. 65
(अपृक्तसञ्ज्ञक) वि का (लोप होता है)।