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पुरोवाक्
मेरे प्रिय अनुजकल्प श्री अवनीन्द्र कुमार ने पाणिनि की अष्टाध्यायी के प्रत्येक पद का अकारादि क्रम से नया कोष प्रस्तुत किया है। वैसे पहले को द्वारा सम्पादित पाणिनि-कोष है, एक दो और अनुक्रमणिकाएँ हैं, परन्तु इस कोष की अपनी तीन विशेषताएँ हैं
१. इसमें न केवल पद प्रत्युत उसके सभी व्याकृत रूप पूरे सन्दर्भ के साथ दे दिये गये हैं। २. प्रत्येक सन्दर्भ के साथ पूरा अर्थ भी सूत्र का दे दिया गया है। ३. जहाँ समास के भीतर भी कोई पद आया हुआ है, उसका भी अपोद्धार कर दिया गया है।
इस दृष्टि से यह कोश अत्यन्त संग्राह्य और उपयोगी हो गया है। __ श्री अवनीन्द्र कुमार ने बड़े मनोयोग से पूरी अष्टाध्यायी का मन्थन किया है, अष्टाध्यायी को उसकी समग्रता में पहचानने की कोशिश की है तथा एक-एक पद को पूरी अष्टाध्यायी के परिप्रेक्ष्य में परखा है। यह दुस्साध्य कार्य रहा होगा, मुझे परितोष है कि मेरे अनुज ने कहीं भी अपनी समग्र दृष्टि में शिथिल समाधिदोष नहीं आने दिया है। ___पाणिनि को समझना पूरे विश्व को समझना है, केवल भाषा के ही विश्व को नहीं, भारत की सूक्ष्मेक्षिका प्रतिभा द्वारा साक्षात्कृत पूरी वास्तविकता को समेटने वाले अर्थ-विश्व को समझना है और बहुत अच्छा होता यदि प्रत्येक प्रविष्टि में विभक्ति, कारक का निर्देश भी यथा-संभव दे दिया गया होता, उससे अर्थ स्पष्टतर होता। जैसे– अगात् [(अ+ग) = अग, पंचमी १] इतना देने से अगात्
का अर्थ अधिक स्फुट हो जाता है, उसमें किसी दुविधा की गुंजाइश नहीं रहती, उसी प्रकार कहाँ • प्रविष्टि-पद स्वयं का वाचक है, कहाँ अपने से ज्ञापित समूह का, कहाँ अर्थ-कोटि का, कहाँ प्रत्यय का, कहाँ वर्ण का या वर्ण-समूह का, यह भी स्पष्ट कर दिया गया होता तो कोष बड़ा तो हो जाता, पर पूर्णतर होता। पर ग्रन्थविस्तार का भय रहा होगा, हिन्दी अनुवाद में ही ये बातें कुछ हद तक गम्य हैं, ऐसा सोच लिया गया होगा।
___ अस्तु, प्रस्तुत पाणिनि-पदानुक्रमणी श्री अवनीन्द्र कुमार के बरसों के तप का श्लाघ्य फल है और पाणिनि-अध्येताओं के लिए उत्तम सन्दर्भग्रन्थ है, मैं कोशकार को हृदय से आशीष देता हूँ। उनका पाणिनि में मनोयोग और बढ़े और वे उत्तरोत्तर व्याकरण के अन्तर्दर्शन में प्रवृत्त हों।
अधिक भाद्रपद शु. १४ . वि. सं. २०५०
__.. -विद्यानिवास मिश्र
प्रधान सम्पादक- नवभारत टाइम्स पूर्वकुलपति-सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय
वाराणसी