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युक्तम्
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युधिकृतः
युक्तम् -I. iv. 50
युच् - III. iii. 128 (जिस प्रकार कर्ता का अत्यन्त ईप्सित कारक क्रिया के (आकारान्त धातुओं से कृच्छ्र तथा अकृच्छ्र अर्थों में साथ युक्त होता है, उसी प्रकार कर्ता का न चाहा हुआ ईषद्, दुर, सु उपपद रहते) युच् प्रत्यय होता है। कारक क्रिया के साथ) युक्त हो,तो (उसकी भी कर्म संज्ञा
...युज... -III. 1.61 होती है)। .
देखें- सत्सू III. 1. 61 युक्तवत् - I. ii. 51
....युज... -III. ii. 142 (प्रत्ययलुप होने पर तदर्थ में लिङ्ग और वचन) प्रकृत्यर्थ देखें - सम्पृचानुरुध० III. ii. 142 के समान हों।
...युज... -III. ii. 182
देखें-दाम्नी III. ii. 182 युक्तारोह्यादयः – VI. ii. 81
....युजि... -III. ii. 59 युक्तारोही आदि समस्त शब्दों का (भी आदिस्वर उदात्त ।
देखें-ऋत्विम्दधृक् III. 1.59 होता है)।
युजे: -I. iii. 64 युक्ते - VI. ii. 66
(अयज्ञपात्र विषय में प्र तथा उपपूर्वक) 'युजिर योगे' - युक्तवाची समास में (भी पूर्वपद को आधुदात्त होता धातु से (आत्मनेपद हो जाता है)।
युजे: - VII.1.71 ....युग... -IV.iv.76
(असमास में) युजि अङ्ग को (सर्वनामस्थान परे रहते देखें- रथयुगप्रासङ्गम् IV. iv.76
नुम् आगम होता है)। ....युगन्धराभ्याम् - IV. iv. 129
युट् - VI. iv. 63 देखें- कुरुयुगन्धराभ्याम् IV. iv. 129 __ (अजादि कित, डित् प्रत्ययों के परे रहते दीङ् धातु से युगपत् – VI. ii. 51
उत्तर) युट् का आगम होता है। (तवै प्रत्यय को अन्त उदात्त भी होता है तथा अव्यवहित युद्धे -III. Iii. 73 पूर्वपद गति को भी प्रकृतिस्वर) एक साथ (होता है)। युद्ध अभिधेय हो (तो आपूर्वक हेज् धातु को सम्प्रयुगपत् - VI. ii. 140
सारण तथा अप् प्रत्यय होता है)। (वनस्पत्यादि समस्त शब्दों में दोनों = पूर्व तथा उत्त- युद्धकः -III. iii. 23 रपद को) एक साथ (प्रकृतिस्वर होता है)।
(सम् पूर्वक) यु,द्रु तथा दु धातुओं से (कर्तृभिन्न कारक युग्यम् -III. I. 121
संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। (वाहन को कहना हो तो) क्यप् प्रत्ययान्त युग्य शब्द
__...युध.. -I. iii. 86 निपातन होता है।
देखें - बुधयुधनशजने I. iii. 86
...युध... - V.i. 120 युच् - III. ii. 148
देखें-अचतुरमंगल० V. 1. 120 '(अकर्मक,चलनार्थक और शब्दार्थक धातुओं से तच्छी
युधि.. - III. ii. 95 लादि कर्ता हो, तो वर्तमान काल में) युच् प्रत्यय होता है। देखें- युधिकृतः III. ii. 95 यु -III. ill. 107
युधिकृषः-III. 1.95 (ण्यन्त धातुओं, आस् तथा श्रन्थ् धातुओं से स्त्रीलिङ्ग (राजन कर्म उपपद रहते) युध तथा कृञ् धातुओं से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में) युच् प्रत्यय होता है। (भतकाल में क्वनिप् प्रत्यय होता है)।