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मुखम्
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होता है)।
.
में)।
मुखम् -VI. 1. 185
मूर्धन्यः - VIII. ill. 55 (अभि उपसर्ग से उत्तर उत्तरपदस्थित) मुख शब्द को (अपदान्त को) मर्धन्य आदेश होता है. ऐसा अधिकार (अन्तोदात्त होता है)।
पाद की समाप्तिपर्यन्त जाने)। ...मुखात् - IV. 1.58
...मूर्धसु - VI. ii. 197 देखें-नखमुखात् IV. 1.58
देखें - पाहन्मूर्धसु VI. ii. 197 मुच - VII. iv.57
मूर्ती: - IV. iv. 127 (अकर्मक) मुच्ल धातु को विकल्प से गुण होता है,
(उपधान मन्त्र समानाधिकरण प्रथमासमर्थ मतुबन्त) सकारादि सन् प्रत्यय परे रहते)।
मर्धन प्रातिपदिक से (ईटों के अभिधेय होने पर वेद-विषय मुचादीनाम् - VII. 1. 59
में मतुप् प्रत्यय होता है तथा प्रकृत्यन्तर्गत जो मतुप,उसका (श प्रत्यय परे रहते) मुचादि धातुओं को (नुम् आगम । लुक् हो जाता है)।
मूर्ती: - V.iv. 115 मुज..-III. I. 117
द्वि तथा त्रि शब्दों से उत्तर जो मूर्धन् शब्द,तदन्त प्रातिदेखें-मुअकल्क III. I. 117
पदिक से (समासान्त ष प्रत्यय होता है, बहुव्रीहि समास मुञ्जकल्कहलिषु -III.i. 117 (विपूय, विनीय और जित्य शब्दों का निपातन किया ।
...मुष... -I. ii.8 जाता है; यथासंख्य करके) मुञ्ज = मूंज, कल्क = देखें-रुदक्दिमपहिस्वपिप्रच्छ: I. 1.8 ओषधि और हलि = बड़ा हल अभिधेय हो तो।
...मुष्क... - V. 1. 107 'मुण्ड.. -III. 1.21
देखें- ऊपसुषि० V.ii. 107 देखें - मुण्डमिश्र III. I. 21
...मुष्टि.. - VI. ii. 168 , मुण्डमिश्रश्लक्ष्णलवणव्रतवखहलकलकृततूस्तेभ्यः - देखें - अव्ययदिवशब्दOVI.ii. 168 III.i.21
मुष्टौ-III. iii. 36 मुण्ड, मिश्र, श्लक्ष्ण, लवण, व्रत, वस्त्र, हल, कल, कृत, (सम्-पूर्वक ग्रह धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा तूस्त -इन (कों) से (करोति' अर्थ में णिच् प्रत्यय
भाव में) मुट्ठी अर्थ में (घञ् प्रत्यय होता है)। होता है)।
...मुष्ट्योः -III. ii. 30 मुगात् - IV. iv. 25
देखें - नाडीमुष्ट्योः III. ii. 30 (तृतीयासमर्थ) मुद्र प्रातिपदिक से (मिला हुआ अर्थ में
...मुह... - VIII. ii. 33 अण् प्रत्यय होता है)।
देखें-दहमुहO VIII. 1.33 मुम् - VI. iii. 66 -
...मूल... - IV.i.64 (अरुस्, द्विषत् तथा अव्यय-भिन्न अजन्त शब्दों को देखें - पाककर्णपर्ण IV. 1. 64 खिदन्त उत्तरपद रहते) मुम् आगम होता है।
...मूल... - IV. iii. 28 ....मूर्छि... - VIII. ii. 57
देखें- पूर्वाहणापराहणाov.ii. 28 देखें- ध्याख्यापृ० VIII. ii. 57
...मूल... -IV.iv.91 मूर्ती – III. iii. 77
देखें-नौवयोधर्म V. iv.91 • मूर्ति (काठिन्य) अभिधेय हो (तो हन् धातु से अप प्रत्यय ...मूल... - VI. ii. 121 .. होता है तथा हन को घन आदेश भी हो जाता है)। देखें-कूलतीर० VI. ii. 121