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मर्यादा...
मर्यादा... - II. 1. 12 देखें - मर्यादाभिविध्योः II. 1. 12 मर्यादाभिविध्योः - II. 1. 12
मर्यादा और अभिविधि अर्थ में (वर्तमान 'आङ्' का पञ्चम्यन्त के साथ विकल्प से अव्ययीभाव समास होता है)।
मर्यादा = ( तेन विना) मर्यादा ।
अभिविधिः (तेन सह ) अभिविधिः ।
... मर्यादावचन... - VIII. 1. 15 देखें- रहस्यमर्यादावचन० VIII. 1. 15 मर्यादावचने - 1. iv. 88
मर्यादा और अभिविधि अर्थ द्योतित होने पर (आङ् शब्द कर्मप्रवचनीय और निपात-संज्ञक होता है)
मर्यादावचने
III. iii. 136
(अवर प्रविभाग अर्थात् इधर के भाग को लेकर) मर्यादा कहनी हो (तो भविष्यत्काल में धातु से अनद्यतनवत् प्रत्ययविधि लुट् नहीं होता है)।
=
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... मलिन... - V. ii. 114
देखें - ज्योत्स्नातमिस्रा० V. ii. 114
... मलीमसाः - Vii. 114 देखें -
- ज्योत्स्नातमिस्रा० VII. 114
...मवाम् - VI. Iv. 20
देखें ज्वरत्वरo VI. iv. 20
मश् - VII. 1. 40
(अम् के स्थान में) मश् आदेश होता है, (वेद-विषय
में) ।
... मस्... - III. iv. 78
देखें
• तिप्तस्झिo III. iv. 78
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414
मसि - VII. 1. 46
(वेद-विषय में) मस् शब्द (इकार अवयववाला हो जाता
है) ।
.... मस्कर..
देखें – मस्करमस्करिणौ VI. 1. 149
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मस्करमस्करिणौ - VI. 1. 149
मस्कर तथा मस्करिन् शब्द (यथासंख्य करके बांस तथा सन्यासी अभिधेय हो, तो) निपातन किये जाते हैं।
- VI. i. 149
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... मस्करिणौ - VI. 1. 149
देखें – मस्करमस्करिणौ VI. 1. 149
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मस्जि... - VII. 1. 60
देखें मस्जिनशो: VII. 1. 60
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मस्जिनशो: - VII. 1. 60
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'टुमस्जो शुद्ध' तथा 'णश अदर्शने' धातुओं को (झलादि प्रत्यय परे रहते नुम् आगम होता है) ।
... मस्तकात् - VI. iii. 11
देखें
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..... महत्... - II. 1. 60
देखें सन्महत्परमोo II. 1. 60
...
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अमूर्धमस्तकात् VI. I. 11
.... महत्... - VI. 1. 168
देखें - अव्ययदिक्शब्द० VI. ii. 168
महतः - VI. iii. 45
(समानाधिकरण उत्तरपद रहते तथा जातीय प्रत्यय परे
रहते) महत् शब्द को (आकारादेश होता है)।
.महतः
VI. iv. 110
देखें - सान्तमहत: VI. iv. 110
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महाव्याहते:
... महदुद्भ्याम् - Viv. 105
देखें – कुमहद्भ्याम् V. iv. 105
महाकुलात् - IV. 1. 141
महाकुल प्रातिपदिक से (अञ् और खच् प्रत्यय विकल्प से होते है, पक्ष में ख)।
महान् - VI. 1. 38
(व्रीहि, अपराह्ण, गुष्टि, इष्वास, जाबाल, भार, भारत, हैलिहिल, रौरव तथा प्रवृद्ध इन शब्दों के उत्तरपद रहते पूर्वपद) महान् शब्द को ( प्रकृतिस्वर होता है) ।
गृष्टि एक बार ब्याई हुई गौ
।
रौरव
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= रुरु मृग की छाल का बना हुआ, डरावना ।
महाराज... - IV. ii. 34
देखें - महाराजप्रोष्ठo IV. ii. 34 महाराजप्रोष्ठपदात् - IV. ii. 34
(प्रथमासमर्थ देवतावाची) महाराज तथा प्रोष्ठपद प्रातिपदिकों से (षष्ठ्यर्थ में ठञ् प्रत्यय होता है) । महाव्याहते: VIII. ii. 71
महाव्याहृति (भुवस् शब्द) को (भी वेद-विषय में दोनों प्रकार से अर्थात् रु एवं रेफ दोनों ही होते हैं)।
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