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मतिबुद्धिपूजार्थेभ्यः
मतिबुद्धिपूजार्थेभ्य: .
मत्यर्थक, बुद्ध्यर्थक तथा पूजार्थक धातुओं से (भी वर्तमानकाल में क्त प्रत्यय होता है)।
- III. ii. 188
मतु... - VIII. iii. 1
देखें - मतुवसो: VIII. iii. 1
-IV. ii. 84
मतुप्
( यन्त, आबन्त प्रातिपदिक से नदी अभिधेय हो तो चातुरर्थिक मतुप् प्रत्यय होता है।
मतुप्
-IV. iv. 127
(उपधान मन्त्र समानाधिकरण प्रथमासमर्थ मतुबन्त मूर्धन् प्रातिपदिकं से ईटों के अभिधेय होने पर वेदविषय में) मतुप् प्रत्यय होता है ( तथा प्रकृत्यन्तर्गत जो मतुप् उसका लुक् हो जाता है)।
मतुप्
-V. ii. 94
('है' क्रिया के समानाधिकरण वाले प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ तथा सप्तम्यर्थ में) मतुप् प्रत्यय होता है) ।
मतो:
मतुप्
-V. ii. 136
(बलादि प्रातिपदिकों से 'मत्वर्थ में) मतुप् प्रत्यय विकल्प से होता है, पक्ष में इनि ।
मतुप्
-VI. i. 170
(अन्तोदात्तं ह्रस्व तथा नुट् से उत्तर) मतुप् प्रत्यय ( उदात्त होता है) । :
मतुवसोः - VIII. III. 1
मत्वन्त तथा वस्वन्त पद को (संहिता में सम्बुद्धि परे रहते रु आदेश होता है) ।
- IV. ii. 71
-
409
(जिस मतुप के परे रहते बहुत अच् वाला अङ्ग हो ) उस मत्वन्त प्रातिपदिक से (भी अञ् प्रत्यय होता है) ।
मतो:
IV. iv. 125
(उपधान मन्त्र समानाधिकरण प्रथमासमर्थ मतुबन्त प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में यत् प्रत्यय होता है, यदि षष्ठ्यर्थ में निर्दिष्ट ईटें ही हों तथा) मतुप् का (लुक् भी हो जाता है, वेद-विषय में)।
...at: - V. iii. 65
देखें - विन्मतो: Viii. 65
मतो: - VI. 1. 213
मतुप् से (पूर्व आकार को उदात्त होता है, यदि वह मत्वन्त शब्द स्त्रीलिङ्ग में सञ्ज्ञाविषयक हो तो)।
मतो:
VIII. ii. 9
(मकारान्त एवं अवर्णान्त तथा मकार एवं अवर्ण उपधावाले प्रातिपदिक से उत्तर) मतुप् को (वकारादेश होता है, किन्तु यवादि शब्दों से उत्तर मतुप् को व नहीं होता) ।
मतौ
-
मतौ
- IV. iv. 136
(प्रथमासमर्थ सहस्र प्रातिपदिक से) मत्वर्थ में (भी घ प्रत्यय होता है, वेद-विषय में) ।
मत्स्ये
- V. ii. 59
(प्रातिपदिकमात्र से) मत्वर्थ में (छ प्रत्यय होता है, सूक्त और साम वाच्य हों तो) ।
मतौ - VI. iii. 118
(अजिरादियों को छोड़कर) मतुप् परे रहते (बह्रच् शब्दों के अणु को दीर्घ होता है, सञ्ज्ञाविषय में) ।
मतौ
-VI. iii. 130
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(सोम, अश्व, इन्द्रिय, विश्वदेव्य • इन शब्दों को) मतुप् प्रत्यय परे रहते (दीर्घ हो जाता है, मन्त्र - विषय में) । मत्वर्थे – I. iv. 19
-
मतुबर्थक प्रत्ययों के परे रहते (तकारान्त और सकारान्त शब्दों की भ संज्ञा होती है)।
मत्वर्थे
-IV. iv. 128
(मास और तनु प्रत्ययार्थ विशेषण हों तो प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से) मतुप् के अर्थ में (यत् प्रत्यय होता है)।
... मत्स्य... - IV. iv. 35
देखें - पक्षिमत्स्यमृगान् IV. Iv. 35
... मत्स्यानाम् - VI. iv. 149
देखें - सूर्यतिष्यo VI. iv. 149
मत्स्ये
- V. iv. 16
(विसारिन् प्रातिपदिक से स्वार्थ में अण् प्रत्यय होता है), मछली अभिधेय हो तो ।
विसारिन् फैलाने वाली, रेंगने वाली मछली ।
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