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प्राचाम्
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प्राच्य...
प्राचाम् -I.1.74
(जिस समुदाय के अचों का आदि अच् एङ् हो,उसकी) पूर्वदेश को कहने में (वृद्धसंज्ञा होती है)। प्राचाम् -II. iv.60
प्राग्देश वालों के (गोत्रापत्य में विहित इज-प्रत्ययान्त से युवापत्य में विहित प्रत्ययों का लुक् होता है)। प्राचाम् -III. 1.90 प्राचीन आचार्यों के मत में (कुष् और रञ्ज धातु से कर्मवद्भाव में श्यन् प्रत्यय और परस्मैपद होता है)। प्राचाम् - III. iv. 18 (प्रतिषेधवाची अलं तथा खलु शब्द उपपद रहते) प्राचीन आचार्यों के मत में (धातु से क्त्वा प्रत्यय होता
प्राचाम् -IV.i. 17
(अनुपसर्जन यजन्त प्रातिपदिकों से स्त्रीलिङ्ग में) प्राचीन आचार्यों के मत में (फ प्रत्यय होता है और वह तद्धित- संज्ञक होता है)। प्राचाम् -IV.1.43
(अनुपसर्जन शोण प्रातिपदिक से) प्राचीन आचार्यों के मत में (स्त्रीलिङ्ग में ङीष् प्रत्यय होता है)। प्राचाम् - IV. 1. 160
(अवृद्धसंज्ञक प्रातिपदिक से अपत्यार्थ में बहल करके फिन् प्रत्यय होता है);प्राचीन आचार्यों के मत में (अन्यत्र इ)। प्राच्यभरतेषु-IV.ii. 112
प्राच्य भरत गोत्रवाची (इजन्त दव्यच प्रातिपदिक से अण प्रत्यय नहीं होता)। प्राचाम् - IV. ii. 119
(उवर्णान्त वृद्धसंज्ञक) प्राग्देशवाची प्रातिपदिकों से (शैषिक ठ प्रत्यय होता है)। प्राचाम् - IV. ii. 122
प्राग्देशवाची (रेफ उपधावाले तथा ईकारान्त वृद्धसंज्ञक प्रातिपदिकों से शैषिक वुञ् प्रत्यय होता है)। प्राचाम् - IV. 1. 138
(कट शब्द आदि में है जिनके ऐसे) प्राग्देशवाची (प्राति- पदिकों से शैषिक छ प्रत्यय होता है)।
प्राचाम् - V. iii. 80
(उप शब्द आदि वाले बहुत अच् वाले मनुष्यनामधेय प्रातिपदिक से नीति और अनुकम्पा गम्यमान होने पर अडच्. वुच तथा घन्, इलच् और ठच् प्रत्यय विकल्प से होते है), प्राग्देशीय आचार्यों के मत में)। प्राचाम् - V. iii. 94 . (एक प्रातिपदिक से भी अपने अपने विषयों में डतरच तथा डतमच् प्रत्यय होते हैं),प्राचीन आचार्यों के मत में। प्राचाम् - V. iv. 101
(खारी-शब्दान्त द्विगुसज्ञक तत्पुरुष से तथा अर्धशब्द से उत्तर जो खारी शब्द, तदन्त से समासान्त टच् प्रत्यय होता है), प्राचीन आचार्यों के मत में। प्राचाम् - VI. ii.74
प्राग्देश निवासियों की (जो क्रीडा, तद्वाची समास में अकप्रत्ययान्त शब्द के उत्तरपद रहते पूर्वपद को आधुदात्त होता है)। प्राचाम् -VI. . 99
(पुर शब्द उत्तरपद रहते) प्राच्य भारत के देशों को कहने में (पूर्वपद को अन्तोदात्त होता है)। प्राचाम् -VI. iii.9
प्राच्यदेशों (जो करों के नाम वाले शब्द, उनमें भी हलादि शब्द के परे रहते हलन्त तथा अदन्त शब्दों से उत्तर सप्तमी विभक्ति का अलुक होता है)। प्राचाम् - VII. Iii. 14
(दिशावाची शब्दों से उत्तर) प्राच्य देश में (वर्तमान याम तथा नगरवाची शब्दों के अचों में आदि अच् को तद्धित जित् णित् तथा किंत् प्रत्यय परे रहते वृद्धि होती है)। प्राचाम् - VII. iii. 24 .
प्राच्य देश में (नगर अन्त वाला जो अङ्ग,उसके पूर्वपद तथा उत्तरपद के अचों में आदि अच को जित.णित तथा कित् तद्धित परे रहते वृद्धि होती है)। प्राचाम् - VIII. ii. 86
(ऋकार को छोड़कर वाक्य के अनन्त्य गुरु-सज्ज्ञक वर्ण को एक-एक करके तथा अन्त्य के टि को भी) प्राचीन आचार्यों के मत में (प्लुत उदात्त होता है)। प्राच्य... -II. iv. 66 देखें- प्राच्यभरतेषु II. iv. 66