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प्रस्थातरः
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प्रश्न...
प्रश्न..-VIII. ii. 105
देखें- प्रश्नाख्यानयोः VIII. II. 105 प्रश्नाख्यानयोः-VIII. ii. 105
(वाक्यस्थ अनन्त्य एवं अपि' ग्रहणं से अन्त्य पद की टि को भी) प्रश्न एवं आख्यान= कथन उत्तर होने पर (स्वरित प्लुत होता है)। प्रश्नान्त... -VIII. 1. 100
देखें- प्रश्नान्ताभिपूजितयो: VIII. 1. 100 प्रश्नान्ताभिपूजितयोः - VIII. 1. 100
प्रश्नान्त = प्रश्न किये जाने वाले वाक्य का अन्तिम पद तथा अभिपूजित = प्रशंसा में विधीयमान प्लुत को अनुदात्त होता है)। प्रश्ने-III. ii. 117
(समीपकालिक) प्रष्टव्य (अनद्यतन परोक्ष भूतकाल) में (वर्तमान धातु से भी लङ् तथा लिट् प्रत्यय होते है)। प्रश्ने - VIII. 1. 32
(सत्यम् शब्द से युक्त तिङन्त को) प्रश्न होने पर (अनु- दात्त नहीं होता। ...प्रश्रथ..-VI.iv.29
देखें - अवोदैधौ० VI. iv. 29 प्रष्ठः - VIII. ii. 92
प्रष्ठ शब्द में षत्व निपातन है, (अप्रगामी अभिधेय हो तो)। प्रसमुपोदः -VIII. 1.6
प्र,सम,उप तथा उत् उपसर्गों को (पाद की पूर्ति करनी हो तो द्वित्व हो जाता है)। प्रसम्भ्याम् - V.iv. 129
(बहुव्रीहि समास में) प्र तथा सम् से उत्तर (जो जानु शब्द,उसके स्थान में समासान्त क्षु आदेश होता है)। प्रसहने -I. Ill. 33
प्रसहन = किसी को दबा लेना वा हरा देना अर्थ में (वर्तमान अधि उपसर्ग से युक्त कृ धातु से आत्मनेपद होता है)। प्रसित... -II. III. 44 देखें-प्रसितोत्सुकाभ्याम् II. iii. 44
प्रसिते - V.II. 66
(सप्तमीसमर्थ स्वाङ्गवाची प्रातिपदिकों से) 'तत्पर अर्थ में (कन् प्रत्यय होता है)। प्रसितोत्सुकाभ्याम् - II. iii. 44
प्रसित = प्रसक्त और उत्सुक शब्दों के योग में (तृतीया । और सप्तमी विभक्ति होती है)। ...प्रसूतैः-II. 11.39
देखें- स्वामीश्वराधिपति H. iil. 39 ...प्रसूभ्यः -III. ii. 157
देखें-जिदक्षिः III. ii. 157 प्रस्कण्य..-VI.i. 148
देखें-प्रस्कण्वहरिश्चन्द्रौ VI.1.148 प्रस्कण्वहरिश्चन्द्रौ - VI. 1. 148
प्रस्कण्व तथा हरिश्चन्द्र शब्द में सुट् का निपातन किया जाता है, (ऋषि अभिधेय हो तो)। ....प्रस्तार.. -IV. iv.72
देखें - कठिनान्तप्रस्तार• IV. iv. 72 प्रस्त्यः -VIII. ii. 54
प्रपूर्वक स्यै धातु से उत्तर (निष्ठा के तकार को विकल्प से मकारादेश होता है)। प्रस्थ.. - IV. ii. 121
देखें-प्रस्थपुरवहान्तात् IV. 1. 121 प्रस्थपुरवहान्तात् -IV. 1. 121
प्रस्थ, पुर, वह अन्तवाले जो (देशवाची वृद्धसंज्ञक) प्रातिपदिक,उनसे (भी शैषिक वुज प्रत्यय होता है)। प्रस्थस्फवहिगर्वपित्रब्दाधिवृन्दा: -VI. iv. 157 (प्रिय, स्थिर, स्फिर, उरु, बहुल, गुरु, वृद्ध, तृप्र, दीर्घ, वृन्दारक शब्दों के स्थान में क्रमशः प्र,स्थ, स्फ, वर, बहि, गर,वर्षि,त्रप,द्राधि,वृन्द-ये आदेश हो जाते हैं; इष्ठन्, इमनिच् तथा ईयसुन् परे रहते)। प्रस्थे -VI. ii. 87
प्रस्थ शब्द उत्तरपद रहते (कादिगणस्थ तथा वृद्धसज्ज्ञक शब्दों को छोड़कर पूर्वपद को आधुदात्त होता है)। प्रस्थोत्तरः... - Iv.ii. 109 देखें-प्रस्थोत्तरपदO IV.ii. 109