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परावराधमोत्तमपूर्वात
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परिनिविश्यः
परावराधमोत्तमपूर्वात् – IV. iii. 5
पर, अवर, अधम, उत्तम- ये शब्द पूर्व में हैं जिनके, ऐसे (अर्ध शब्द) से (भी शैषिक यत् प्रत्यय होता है)। परावराभ्याम् -v.ii. 29
(दिशा, देश तथा काल अर्थों में वर्तमान सप्तम्यन्त, पञ्चम्यन्त तथा प्रथमान्त) पर तथा अवर प्रातिपदिकों से (विकल्प से स्वार्थ में अतसुच् प्रत्यय होता है)। परि...-I. iii. 18
देखें-परिव्यवेभ्यः I. iii. 18 ...परि...-I. iv. 89
देखें - प्रतिपर्यनक I. iv.89 ...परि..-II.i. 11
देखें-अपपरिबहिरचकः II.i. 11 परि...-III. iii.37
देखें- परिन्योः III. iii. 37 परि.. -IV. iii. 61
देखें- पर्यनुपूर्वात् IV. iii. 61 परि...- V. iii.9
देखें - पर्यभिभ्याम् v. iii.9. परि...- VI. II. 33
देखें-परिप्रत्युपापा: VI. ii. 33 परि...-VIII. iii.70
देखें-परिनिविभ्य: VIII. iii. 70 ...परि...-VIII. iii. 72
देखें - अनुविपर्य० VIII. iii. 72 परिक्रयणे-I. iv.44
परिक्रयण में (जो साधकतम कारक, उसकी विकल्प से सम्प्रदान संज्ञा होती है, पक्ष में करण संज्ञा)।
परिक्रयण = नियत समय तक वेतनादि द्वारा कर्ज चुकाना। परिक्लिश्यमाने -III. iv. 55
चारों ओर से क्लेश को प्राप्त (स्वाङ्गवाची द्वितीयान्त) शब्द उपपद हो तो (भी धातु से णमुल प्रत्यय होता है)।
....परिक्षिप..-III. 1. 142
देखें-सम्पृचानुरुध० - II. ii. 142 ...परिक्षिप.. - III. I. 146
देखें-निन्दहिंसक III. ii. 146 परिखाया: - V.i.17
(प्रथमासमर्थ) 'परिखा' प्रातिपदिक से (षष्ठ्यर्थ एवं सप्तम्यर्थ में ठञ् प्रत्यय होता है, यदि वह प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक स्यात् = 'सम्भव हो' क्रिया के साथ समानाधिकरणवाला हो तो)। परिचाय्य..-III. 1. 131
देखें - परिचाय्योपचाय्यः III. 1. 131 ..... परिचाय्योपचाय्यसमूह्याः -III. . 131
(अग्नि अभिधेय हो तो) परिचाय्य,उपचाय्य,समूह्यये शब्द निपातन किये जाते है। परिजय्य..-v.i.92
देखें-परिजय्यलण्यकार्य०V.i. 92 परिजय्यलण्यकार्यसुकरम् - V. 1. 92.
(ततीयासमर्थ कालवाची प्रातिपदिकों से) परिजय्य = 'जीता जा सकता है',लभ्य = 'प्राप्त करने योग्य' कार्य = किया जा सके' तथा सुकरम् = सुगमता से किया जा सके- इन अर्थों में (यथाविहित ठञ् प्रत्यय होता है)। परिजातः -V. 1.67
(तृतीयासमर्थ सस्य प्रातिपदिक से) 'सब ओर से उत्पन्न' अर्थ में (कन् प्रत्यय होता है)। परिणा-II.i. 10
(सुबन्त) परि' के साथ (अक्ष.शलाका और संख्यावाचक शब्दों का अव्ययीभाव समास होता है)। ...परिदह...- III. ii. 142
देखें-सम्पृचानुरुप III. ii. 142 ...परिदेवि..-III. I. 142
देखें - सम्पृचानुरुध III. ii. 142 परिनिविण्यः -VIII. iii. 70
परि,नि तथा वि उपसर्ग से उत्तर (सेव,सित,सय,सिवु, सह, सुट आगम, स्तु तथा स्वा के सकार को मूर्धन्य
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सत्यय
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