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परक्षेत्रे
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परस्मैपदेषु
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परक्षेत्रे - V. ii. 92
(क्षेत्रियच शब्द का निपातन किया जाता है), दूसरे क्षेत्र = शरीर में चिकित्सा किये जाने योग्य अर्थ में)। परम् -I. iv. 2
(विप्रतिषेध = तुल्यबलविरोध होने पर) बाद वाले सूत्र से कथित (कार्य होता है)। परम् - II. ii. 31
(राजदन्तादि-गणपठित शब्दों में उपसर्जन का) बाद में प्रयोग होता है। परम् - VIII. 1.2
(उस द्वित्व किये हुये के) पर वाले शब्द की (आमेडित सजा होती है)। ...परम...-II.1.60
देखें-सन्महत्परमो० II.1.60 परम = सबसे अधिक दूर,प्रमुख, सबसे अधिक ऊँचा, सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण। .....परमे... - VIII. iii.97
देखें - अम्बाम्बगोभूमि० VIII. ii. 97 ...परम्पर... - V.II. 10
देखें - परोवरपरम्पर० V. 1. 10 परयोः -III. 1. 39
देखें-द्विवत्परयोः III. 1.39 ...परयोः - VI.i. 81
देखें - पूर्वपरयो: VI. 1. 81 पररूपम् - VI. 1. 90 .
(अवर्णान्त उपसर्ग से उत्तर एङ आदिवाले धात के परे रहते पूर्व,पर के स्थान में) पररूप एकादेश होता है। परवत् -II. iv. 26
पर = उत्तरपद के समान (लिङ्ग होता है. दन्द्र और तत्प- रुष का)। ...परशव्ययोः - IV. iii. 165
देखें - कंसीयपरशव्ययो: IV. iii. 165.
परश्वधात् - IV. iv. 58 (प्रहरण समानाधिकरणवाची प्रथमासमर्थ) परश्वध प्रातिपदिक से (षष्ठ्यर्थ में ठञ् प्रत्यय होता है और चकार से ठक भी)।
परश्वध = कुल्हाड़ी,कुठार। परसवर्ण: - VIII. iv. 57 (अनुस्वार को यय् प्रत्याहारस्थ वर्ण परे रहते) परसवर्ण आदेश होता है । परस्मिन् -I.1.56
परनिमित्तक (अजादेश, पूर्व को विधि करने में स्थानिवत् हो जाता है)। परस्मिन् – III. iii. 138
(भविष्यत्काल में) पहले भाग की (मर्यादा को कहना हो तो अनद्यतन की तरह प्रत्ययविधि विकल्प से नहीं होती, यदि वह कालविभाग अहोरात्रसम्बन्धी न हो तो)। परस्मैपदम् -I. iii. 78
(जिन धातुओं से जिस विशेषण द्वारा आत्मनेपद का विधान किया है, उनसे अवशिष्ट धातुओं से कर्तृवाच्य में) परस्मैपद होता है। परस्मैपदम् -I.iv.98
(लादेश) परस्मैपदसंज्ञक होते हैं। परस्मैपदम् -III.1.90 . (कुष और रक्षा धातुओं से कर्मवद्भाव में श्यन् प्रत्यय और) परस्मैपद होता है, (प्राचीन आचार्यों के मत में)। परस्मैपदानाम् - III. iv. 82
(लिट् लकार के) परस्मैपदसंज्ञक जो तिबादि आदेश, उनके स्थान में (यथासङ्ख्य करके णल,अतुस,उस्, थल, अथुस, अ,णल.व,म- ये आदेश हो जाते हैं)। . परस्मैपदेषु - II. iv.77
परस्मैपद परे रहते (गा,स्था,घुसज्ञक धातु,पा और भू - इन धातुओं से उत्तर सिच् का लुक होता है)। परस्मैपदेषु -III.1.55
(कर्तृवाची लु) परस्मैपद परे रहते (पुषादि,धुतादि और लदित् धातुओं से उत्तर च्लि को 'अङ्' आदेश होता है)।