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निष्ठातः
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निष्ठातः -VIII. I. 42
(रेफ तथा दकार से उत्तर) निष्ठा के तकार को (नकारा- देश होता है तथा निष्ठा के तकार से पूर्व के दकार को भी नकारादेश होता है)। निष्ठायाम् - VI. 1. 12
(स्फायी धातु को) निष्ठा = क्त और क्तवतु प्रत्यय के परे रहते (स्फी आदेश हो जाता है)। निष्ठायाम् -VI. iv. 52
(सेट) निष्ठा परे रहते णि का लो निष्ठायाम् -VI. 1.60
(ण्यत् के अर्थ से भिन्न अर्थ में वर्तमान) निष्ठा के परे रहते (क्षि अङ्गको दीर्घ हो जाता है)। निष्ठायाम् -VI. iv.95 " (हलादि अङ्ग की उपधा को) निष्ठा परे रहते (हस्व हो जाता है)। निष्ठायाम् -VII. 1. 14
(टओश्वि तथा ईकार इत्सजक धातुओं को) निष्ठा परे रहते (इट् आगम नहीं होता)। निष्ठायाम् - VII. ii.. 47 (निर पूर्वक कुष् से उत्तर) निष्ठा को (इट् आगम होता
निसः -VIII. 1. 102
निस् के (स को तपति परे रहते अनासेवन अर्थ में मूर्धन्य आदेश होता है)। निसमुपविष्य -1. iii. 30
नि, सम्, उप एवं वि उपसर्ग से उत्तर (हे धातु से आत्मनेपद होता है)। ....निस्तब्यौ - VIII. III. 114
देखें-प्रतिस्तव्यनिस्तब्यौ VIII. III. 114 निस्तब्ध = सुन्न हुआ, रोका हुआ, अच्छी तरह जोड़ना। निस... -VIII. iv. 32
देखें-निसनिक्षनिन्दाम् VIII. iv. 32 ... निसनिक्षानिन्दाम् - VIII. iv. 32
(उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर) निस,निक्ष तथा निन्द् धात के (नकार को विकल्प से णकारादेश होता है,कृत परे रहते)। ...नी... - III. II. 61
देखें- सत्सू० III. 1. 61 ...नी... - III. I. 182
देखें-दाम्नी III. 1. 182 . नी...-III. 1.37 · देखें - परिन्योः III. 1. 37 नीक् - VII. N.84
(वयु, संसु, ध्वंसु, अंशु, कस, पलं, पद, स्कन्दिर इन धातुओं के अभ्यास को यङ्तथा यङ्लक परे रहते) नीक आगम होता है)। नीचैः-I.ii. 30
नीचे भागों से उच्चरित(अच की अनुदात्त संज्ञा होती है)। नीणोः - III. iii. 37
(परि तथा नि उपपद रहते हुए यथासंख्य) नी तथा इण धातुओं से (कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में छूत तथा उचित आचरण के विषय में घञ्प्रत्यय होता है)। नीती-V. 1.77
'नीति' गम्यमान हो तो (भी उस अनुकम्पा से सम्बद्ध प्रातिपदिक से तथा तिङन्त से यथाविहित प्रत्यय होते हैं)।
निष्ठोपमानात् - VI. II. 169
(बहुव्रीहि समास में) निष्ठान्त तथा उपमानवाची से उत्तर (स्वाङ्गमुख शब्द उत्तरपद को विकल्प से अन्तोदात्त होता
...निष्पत्रात् - V. iv. 61
देखें - सपत्रनिष्पत्रात् V.iv.61 निकावाणि: -V.iv.60
निष्पवाणि शब्द को भी कप का अभाव निपातन किया जाता है। निष्पवाणि = खड्डी से तुरन्त निकाला हुआ नया कपड़ा। निस्... - VIII. Iii. 76
देखें-निर्निविश्य VIII. 1.76