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अण् -IV. iii. 133
अण् -IV. iv. 126 (षष्ठीसमर्थ बिल्वादि प्रातिपदिकों से विकार और अव- __ (उपधान मन्त्र समानाधिकरण वाले मतुबन्त अश्विमान् यव अर्थों में) अण् प्रत्यय होता है। .
प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में इष्टका अभिषेय हो तो) अण अण् -IV. iii. 149
प्रत्यय होता है, (तथा मतुप् का लुक होता है, वेद-विषय (षष्ठीसमर्थ तसिलादि प्रातिपदिकों से विकार और अवयव अर्थों में) अण् प्रत्यय होता है।
अण् -V.i. 27 अण् -IV. iii. 161
(शतमान, विंशतिक, सहस्र तथा वसन प्रातिपदिकों से .. (षष्ठीसमर्थ प्लक्षादि प्रातिपदिकों से फल के विकार
'तदर्हति' पर्यन्त कथित अर्थों में) अण प्रत्यय होता है। और अवयव की विवक्षा होने पर) अण प्रत्यय होता है। अण...- V.I. 41 अण् -IV. iv.4
देखें- अणजौ v.i. 41 (ततीयासमर्थ कुलत्थ तथा ककार उपधावाले प्रातिप- अण्-V. 1. 96 दिकों से 'संस्कृतम्' अर्थ में) अण प्रत्यय होता है। (सप्तमीसमर्थ व्युष्टादि प्रातिपदिकों से 'दिया जाता है' अण् -IV. iv. 18
और 'कार्य' अर्थों में) अण प्रत्यय होता है। (तृतीयासमर्थ कुटिलिका प्रातिपदिक से 'हरति' अर्थ अण् -V.i. 104 में) अण प्रत्यय होता है।
(प्रथमासमर्थ ऋतु प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में) अण् प्रत्यय अण्- IV. iv. 25
होता है. (यदि वह प्रथमासमर्थ ऋतु प्रातिपदिक प्राप्त (तृतीयासमर्थ मुद्ग प्रातिपदिक से मिला हुआ अर्थ में) समानाधिकरण वाला हो तो)।। अण् प्रत्यय होता है।
अण् -v.i. 109 अण् -IV. iv. 48
(प्रयोजन समानाधिकरणवाची प्रथमासमर्थ विशाखा
तथा आषाढ प्रातिपदिकों से यथासङ्ख्य करके मन्थ तथा (षष्ठीसमर्थ महिषी आदि प्रातिपदिकों से न्याय्य व्यव
दण्ड अभिधेय होने पर षष्ठ्यर्थ में) अण प्रत्यय होता है। हार अर्थ में ) अण् प्रत्यय होता है।
अण् -V.i. 129, अण् -IV. iv.56
(षष्ठीसमर्थ हायन शब्द अन्तवाले तथा युवादि (शिल्पवाची प्रथमासमर्थ मडुक तथा झर्झर प्रातिपदिकों
प्रातिपदिकों से भाव और कर्म अर्थों में) अण् प्रत्यय होता से विकल्प से षष्ठ्यर्थ में) अण प्रत्यय होता है। अण् -IV. iv. 68
अण् -V.ii. 38 (प्रथमासमर्थ भक्त प्रातिपदिक से 'इसको नियतरूप से
(प्रथमासमर्थ प्रमाण-समानाधिकरणवाची पुरुष तथा दिया जाता है',इस अर्थ में विकल्प से) अण् प्रत्यय होता
हस्तिन् प्रातिपदिकों से षष्ठ्यर्थ में) अण (तथा द्वयसच,
दनच् और मात्रच्) प्रत्यय (होते है)। अण् -IV. iv.80 (द्वितीयासमर्थ शकट प्रातिपदिक से 'ढोता है। अर्थ में अण् - V.ii. 61 अण् प्रत्यय होता है।
(विमुक्तादि प्रातिपदिकों से 'अध्याय' और 'अनुवाक' अण् -IV. iv.94 -
अभिधेय हों तो मत्वर्थ में ) अण् प्रत्यय होता है। (ततीयासमर्थ उरस प्रातिपदिक से बनाया हुआ' अर्थ अण-v.ii. 103 में) अण् (और यत्) प्रत्यय (होते है)।
(तपस् तथा सहस्र प्रातिपदिकों से मत्वर्थ में) अण् प्रत्यय अण-IV. iv. 112
होता है। (सप्तमीसमर्थ वेशन्त और हिमवत् प्रातिपदिकों से भव अण - V. iii. 109 अर्थ में) अण प्रत्यय होता है, (वेद-विषय में)।
(शर्करादि प्रातिपदिकों से इवार्थ में) अण प्रत्यय होता अण् -IV. iv. 124 (षष्ठीसमर्थ असुर शब्द से वेद-विषय में 'असुर की अण... - V. iii. 117 अपनी माया' अभिधेय होने पर) अण प्रत्यय होता है। देखें- अणजी V.III. 117