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...ध्यान्त
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...ध्वान्त - VII. ii. 18 देखें-क्षुब्धस्वान्त०VII. ii. 18 ध्वान्त = ढका हुआ, अन्धकार। ध्वे -VII. 1.78
(ईड तथा जन् धातु से उत्तर) ध्व (तथा से सार्वधातुक) को (इट् आगम होता है)। ...ध्वोः - VIII. II. 37
देखें- स्वो: VIII. ii. 37 |
न्... - VI.1.3
देखें-न्द्राः VI.1.3 न-प्रत्याहारसूत्र VII
भगवान् पाणिनि द्वारा अपने सप्तम प्रत्याहार सूत्र में पठित पञ्चम वर्ण।
पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का उन्नीसवां वर्ण। न-I.1.4
(जिस आर्धधातुक को निमित्त मानकर धातु के अवयव कालोपहुआ हो,उसी आर्धधातुकको निमित्त मानकर इक के स्थान में जो गुण,वृद्धि प्राप्त होते हैं,वे) नहीं होते। न-I. 1. 10 (स्थान और प्रयत्न तुल्य होने पर भी अच् और हल् की परस्पर सवर्ण संज्ञा) नहीं होती। न-I.1. 28
(बहुव्रीहि समास में सर्वादियों की सर्वनाम संज्ञा) नहीं होती। न-1.1.43
निषेध (और विकल्प की विभाषा संज्ञा होती है)। न-1.1.57
(पदान्त,द्विर्वचन,वरे,यलोप,स्वर,सवर्ण,अनुस्वार,दीर्घ, जश, चर् - इनकी विधियों में परनिमित्तक अजादेश स्थानिवत्) नहीं होता। न-I.1.62
(लक, श्ल और लप शब्दों के द्वारा जहाँ प्रत्यय का अदर्शन किया गया हो, उसके परे रहते जो अङ्, उसको जो प्रत्ययलक्षण कार्य प्राप्त हों,वे) नहीं हों। न-I. 1. 18 (सेट् क्त्वा प्रत्यय कित) नहीं होता है।
न-1.1.37
(सुबह्मण्या नाम वाले निगद में एकश्रुति) नहीं होती । (किन्तु उस निगद में वर्तमान स्वरित को उदात्त तो हो जाता है)। न-I. iii.4 (विभक्ति में वर्तमान अन्तिम तवर्ग,सकार और मकार इत्सञक) नहीं होते। न-I. iii. 15
(गत्यर्थक तथा हिंसार्थक धातुओं से क्रिया के अदल-.. बदल अर्थ में आत्मनेपद) नहीं होता। न-I.ii. 58
(अनु उपसर्गपूर्वक सन्नन्त ज्ञा धातु से आत्मनेपद) नहीं होता है। न-I.ii. 89
(पा, दमि, आयूर्वक यम, आङपूर्वक यस, परिपूर्वक मुह,रुचि,नृति,वद,वस्-इन ण्यन्त धातुओं से परस्मैपद) नहीं होता)। न-I. iv.4
(इयङ् उवङ् आदेश होता है जिन ईकारान्त ऊकारान्त स्त्री की आख्यावाले शब्दों को, उनकी नदी-संज्ञा) नहीं होती,(स्त्री शब्द को छोड़कर)। न-II. ii. 10 (निर्धारण में वर्तमान षष्ठ्यन्त सुबन्त का समर्थ सुबन्त के साथ समास) नहीं होता। न-II. iii. 69
(ल,उ,उक,अव्यय,निष्ठा,खलर्थ,तन् - इन के प्रयोग में षष्ठी विभक्ति) नहीं होती। न-II. iv. 14 (दधिपय आदि द्वन्द्व शब्दरूप एकवद्) नहीं होते।