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धर्मात्
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धातुस्थ.. - VIII. iv. 26
देखें - धातुस्थोरुषुभ्य: VIII. iv. 26 धातुस्थोरुषुभ्यः - VIII. iv. 27 .
धातु में स्थित निमित्त से उत्तर तथा उरु एवं षु शब्द से उत्तर (नस के नकार को भी वेद-विषय में णकार आदेश होता है)।
षु = प्रसूति, प्रजनन धातो: -I. iv. 79 (वे गति और उपसर्ग-संज्ञक शब्द) धातु से (पहले होते
धर्मात् - V. iv. 124
(केवल पूर्वपद से परे जो) धर्म शब्द, तदन्त बहुव्रीहि से समासान्त अनिच् प्रत्यय होता है। . धाम् - IV. iv. 47
(षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक से) न्याय्य व्यवहार अर्थ में (ढक् प्रत्यय होता है)। धयें - VI.ii. 65
(हरण शब्द को छोड़कर) धर्म्यवाची शब्दों के परे रहते (सप्तम्यन्त तथा हारिवाची पूर्वपद को आधुदात्त होता है)। धा-v. iii. 42 (क्रिया के प्रकार अर्थ में वर्तमान सङ्ख्यावाची प्राति- पदिक से) धा प्रत्यय होता है। धा-V. iv. 20
(आसन्नकालिक क्रिया की अभ्यावृत्ति के गणन अर्थ में वर्तमान बहु प्रातिपदिक से विकल्प से) धा प्रत्यय होता है। ...धा: -I.i. 19
देखें - दाधा: I. 1. 19 धातवः -I. iii.1
(भ जिनके आदि में है तथा वा धात के समान जो क्रियावाची शब्द हैं,वे) धातुसंज्ञक होते हैं। धातवः -III.i. 32
(सनाद्यन्त समुदाय) धातुसंज्ञक होते हैं। ...धातु... - VI. iv.77
देखें-श्नुधातुध्रुवाम् VI. iv.77 धातुप्रातिपदिकयोः -II. iv.71
धातु और प्रातिपदिक के अवयवभूत (सुप् का लुक् होता है)। धातुलोपे - I. 1.4
(जिस आर्धधातुक को निमित्त मानकर) धातु के अवयव का लोप हुआ हो,उसी (आर्धधातुक) को निमित्त मानकर (इक् के स्थान में जो गुण,वृद्धि प्राप्त होते हैं,वे नहीं होते)। धातुसम्बन्धे - III. iv.1
दो धातुओं के अर्थ का सम्बन्ध होने पर भिन्नकाल में विहित प्रत्यय भी कालान्तर में साधु होते हैं।
धातोः -III. 1.7
(इच्छाक्रिया के कर्म का अवयव समानकर्तृक) धातु से (इच्छा अर्थ में विकल्प करके सन् प्रत्यय होता है)। धातोः -III. 1. 22
(एकाच और हलादि) धातु से (क्रियासमभिहार अर्थात् पुन:पुनः अथवा अतिशय अर्थ में विकल्प से यङ् प्रत्यय होता है)। धातो: - III. 1. 91
अधिकार सूत्र है,तृतीय अध्याय की समाप्ति तक इसका । अधिकार जाएगा। अर्थात् तृतीयाध्याय की समाप्ति तक कहे जाने वाले प्रत्यय धातु से ही होंगे। धातोः -III. ii. 14
धातुमात्र से (संज्ञा विषय में अच् प्रत्यय होता है, शम्' उपपद रहने पर)। धातो: -VI.i.8
(लिट् लकार के परे रहते) धातु के (अवयव अनभ्यास प्रथम एकाच एवं अजादि के द्वितीय एकाच को द्वित्व होता है)। धातो: -VI.i.77
(यकारादि-प्रत्यय-निमित्तक ही जो) धातु का (एच. उसको यकारादि प्रत्यय के परे रहते वकारान्त अर्थात् अव् आव आदेश होते हैं, संहिता के विषय में)। धातो: - VI. 1. 156 धातु का (अन्त उदात्त होता है)।