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ताजः
...तन्द्र...
तनिपत्योः -VI. iv.99
तन् तथा पत् अङ्ग की (उपधा का लोप होता है, वेदविषय में; अजादि कित्, ङित् प्रत्यय परे रहते)। ...तनिषु-VI. ill. 115
देखें-नहिवृति० VI. Iii. 115 तनुत्वे - V.III. 91
(वत्स, उक्षन, अश्व, ऋषभ इन प्रातिपदिकों से) . 'अल्पता' घोतित हो रही हो तो (ष्टरच् प्रत्यय होता) है। तनूकरणे -III. 1.76
तनूकरण अर्थात् छीलने अर्थ में वर्तमान (तथू धातु से . श्नु प्रत्यय विकल्प से होता है, कर्तृवाची सार्वधातुंक परे रहने पर)। रहनाप ...तनेषु-VI. Hi. 16देखें-घकालतनेषु VI: Ill. 16
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तनोते: - VI. in.17
ताजा-V. iii. 119 (ज्यादि प्रत्ययों की) तद्राज संज्ञा होती है। तद्वान् -IV. iv. 125
(उपधान मन्त्र समानाधिकरण प्रथमासमर्थ) मतबन्त प्रातिपदिक से षष्ठ्य र्थ में यत् प्रत्यय होता है.यदि (षष्ठ- यर्थ में निर्दिष्ट ईंटें ही हों तथा मतुप् का लुक् भी हो जाता है; वेद-विषय में)। तद्विषयाणि -IVii. 65 (प्रोक्तप्रत्ययान्त छन्द और ब्राह्मणवाची शब्द) अध्येत् वेदितृ - प्रत्यय-विषयक होते हैं,(अन्य प्रोक्तप्रत्ययान्त शब्दों का केवल प्रोक्त अर्थ में प्रयोग होता है)। तद्विवयात् - V. iii. 106
वह अर्थात् इवार्थ विषय है जिसका, ऐसे (समास में वर्तमान) प्रातिपदिक से (भी इवार्थ में छ प्रत्यय होता है। तब्बमोः -III. iv.2
(क्रिया का पौन:पुन्य गम्यमान हो तो धातु से धात्वर्थ- सम्बन्ध होने पर सब कालों में लोट प्रत्यय हो जाता है तथा उस लोट् के स्थान में नित्य हि और स्व आदेश होते हैं तथा) त, ध्वम् भावी लोट् के स्थान में (विकल्प से हि,स्व आदेश होते हैं)। ...तन... - VII. 1. 45
देखें - तप्तनप० VII. I. 45 ...तनप्.. - VII. I. 45
देखें-तप्तनपO VII. 1.45 तनादि ... - III. 1. 79
देखें - तनादिकृश्यः III. 1.79 तनादिकृज्य: - III. 1.79
तनादिगण की धातुओं तथा डुकृञ् धातु से उत्तर (उ' प्रत्यय होता है, कर्तृवाची सार्वधातुक परे रहने पर)। तनादिभ्यः - II. iv.79
तनादि धातुओं से उत्तर सिच का लक विकल्प से होता है, त' और थास् परे रहते)।
तन् अङ्ग की (उपधा को झलादि सन् परे रहते विकल्प से दीर्घ होता है)। तनोते: - VI. iv. 44
तनु अङ्गको विकल्प से यक् परे रहते आकारादेश होता है)। ...तनोत्यादीनाम् - VI. iv. 37
देखें - अनुदात्तोपदेश VI. iv. 37 ....तन्ति.. - VI. 1.78
देखें - गोतन्तियवम् VI. I. 78 तन्त्रात् -V. ii. 70
पञ्चमीसमर्थ तन्त्र प्रातिपदिक से (अचिरापहृत' = थोड़ा काल खड्डी से बाहर निकलने को बीता है अर्थात् तत्काल बुना हुआ अर्थ में कन प्रत्यय होता है)। ...तन्न्यो : - V. iv. 159
देखें - नाडीतन्त्र्यो: V. iv. 159 ...तन्द्रा...-III. II. 158
देखें- पहिगृहिक III. I. 158