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तथोः
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तथो: - VIII. 1. 40
(झप से उत्तर) तकार तथा थकार को (धकार आदेश होता है, किन्तु डुधाञ् धातु से उत्तर धकारादेश नहीं हो- ता)। ...तदः -V. iii. 15
देखें-सर्वैकान्यov.ii. 15 तदः -V.ili. 19
(काल अर्थ में वर्तमान सप्तम्यन्त) तत् प्रातिपदिक से (दा तथा दानीम् प्रत्यय होते है)। ...तदः - V. 1. 92
देखें-किंयत्तदः V. 1. 92 तदधीनवचने -v.iv.54
(स्वामिविशेषवाची प्रातिपदिक से) ईशितव्य' अभिधेय होने पर (कृ.भू तथा अस् के योग में तथा सम्पूर्वक पद् के योग में साति प्रत्यय होता है)। तदन्तस्य -1.1.71
(जिस विशेषण से विधि की जाये,वह विशेषण) विशे- षणान्त (एवं स्वरूप) का ग्राहक होता है। तदभावे-I. 1.55
(सम्बन्ध को वाचक मानकर यदि संज्ञा हो तो भी) उस सम्बन्ध के हट जाने पर (उस संज्ञा का अदर्शन होना चाहिये, पर वह होता नहीं है)। तदर्थ... - II. 1. 35
देखें - तदर्थार्थवलिहित० II. 1. 35 तदर्थम् - V.i. 12 '(चतुर्थीसमर्थ विकृतिवाची प्रातिपदिक से उपादानकारण अभिधेय हो तो 'हित' अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है) यदि वह उपादानकारण अपने उत्तरावस्थान्तर - वकृति विकार के लिये हो तो। तदर्थस्य -II. 1.58
वि और अव उपसर्ग से युक्त ह और पण के अर्थ वाली (दिव धात) के (कर्म कारक में षष्ठी विभक्ति होती है)। तदर्थार्थबलिहितसुखरक्षितैः - II. 1. 35
(चतुर्थ्यन्त सुबन्त) तदर्थ तथा अर्थ, बलि, हित, सुख, रक्षित- इन (समर्थ सुबन्तों) के साथ (विकल्प से समास को प्राप्त होता है और वह तत्पुरुष समास होता है)।
तदर्थे-IV.1.79 (क्रय्य शब्द का निपातन किया जाता है) उस अर्थ में अर्थात् क्रयार्थ अभिधेय होने पर। . तदर्थे - VI. ii. 43
(चतुर्थन्त पूर्वपद को) चतुर्थ्यन्तार्थ के उत्तरपद रहते . . (प्रकृतिस्वर होता है)। तदर्थेषु - VI. ii. 71
(अन्न की आख्यावाले शब्दों को) उस अन्न के लिये पात्रादि,तद्वाची शब्द के उत्तरपद रहते (आधुदात्त होता है)। ...तदवध्योः - IV.ii. 124
देखें - जनपदतदवथ्यो: IV. 1. 124.. ...तदवेतेषु - V.I. 133
देखें - श्लाघात्याकार० V. 1. 133 तदादि- I. iv. 13
(जिस धातु या प्रातिपदिक से प्रत्यय का विधान किया जाये,उस प्रत्यय के परे रहते) उस (धातु या प्रातिपदिक) का आदि वर्ण है आदि जिसका, वह समुदाय (अङ्गसंज्ञक होता है)। तदाद्याचिख्यासायाम् -II. iv. 21
उपज्ञा और उपक्रम के नकर्मधारयवर्जित आदि = प्रथमकर्ता के कथन की इच्छा होने पर (उपज्ञान्त और उपक्रमान्त तत्पुरुष नपुंसकलिङ्ग में होते है)। ...तदो: - VI.i. 128
देखें- एक्तदो: VI. 1. 128 तदो:-VII. 1. 106
(त्यदादि अङ्गों के अनन्त्य) तकार तथा दकार के स्थान में (सु विभक्ति परे रहते सकारादेश होता है)। ...तद्धर्म... -III. 1. 134 - देखें - तच्छीलतधर्म III. ii. 134 ...तद्धित... -I. ii. 46
देखें - कृत्तद्धितसमासा: I. ii. 46 ..तद्धित... - VIII.1.57
देखें - चनचिदिव० VIII. 1. 57 तद्धितः -1.1.37
(जिससे सारी विभक्ति उत्पन्न न हो,ऐसे) तद्धित-प्रत्ययान्त शब्द (की भी अव्ययसंज्ञा होती है)। .