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.छ्द...
.. छ्द... - VII. 1. 57
देखें - कृतवृत० VII. 1. 57
- VI. i. 71
छकार परे रहते ( भी हस्वान्त को तुक् का आगम होता
है, संहिता के विषय में)।
....छेदात्... - V. 1. 64
देखें शीर्षच्छेदात् V. 1. 64
छेदादिष्य - V. 1. 63
(द्वितीयासमर्थ) छेदादि प्रातिपदिकों से (नित्य ही समर्थ
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ज - प्रत्याहारसूत्र X
भगवान् पाणिनि द्वारा अपने दशम प्रत्याहार सूत्र में पठित प्रथम वर्ण ।
पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का पच्चीसवां वर्ण ।
ज - VI. Iv. 36
(हन् अङ्ग के स्थान में हि परे रहते) ज आदेश होता है। अबू - VI. 17
'जस्' इस धातु की (तथा वह आरम्भ में है जिन छः धातुओं के, उनकी अभ्यस्त सखा होती है)।
... जगती - IV. Iv. 122
देखें - रेवतीजगतीहवि० IV. Iv. 122 जगती = मानवजाति ।
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जगृभ्म - VII. 1. 64
'जगृभ्म' यह शब्द थल परे रहते इडभावयुक्त निपातन किया जाता है, (वेदविषय में) ।
जग्धिः
II. iv. 36
(अद् के स्थान में ल्यप् और तकारादि कित् आर्धधातुक परे रहते) जग्घ् (आदेश होता है)।
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जघन्य... - II. 1. 57
देखें पूर्वापरप्रथम II. 1. 57
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जङ्गल - VII. iii. 25
देखें - अङ्गलधेनुo] VII. III. 25 जङ्गलधेनुवलयान्तस्य VII. I. 25
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जङ्गल, धेनु तथा वलज अन्तवाले अङ्ग के (पूर्वपद के अचों में आदि अच्] को वृद्धि होती है तथा इन अग़ों का
है' अर्थ में यथाविहित ठक् प्रत्यय होता है)।.
.... छे... - VI. III. 98
देखें - आशीरास्था० VI. iii. 98.
...छौ - IV. ii. 47
देखें- पच्छौIVIII. 47
...छौ
IV. 1. 83
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देखें – ठक्छौ IV. 1. 83 ........
• IV. iv. 117
देखें पच्छौ IV. Iv. 117
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उत्तरपद विकल्प से वृद्धिवाला होता है; बिंतु, णित् तथा कित् तद्धित परे रहते ) ।
वलज = धान्यराशि ।
... - VI. I. 114
देखें - कण्ठपृष्ठo VI. II. 114
.....
III. ii. 21
देखें - दिवाविभा० III. ii. 21 .... - IV. 1. 55
देखें - नासिकोदरीष्ठ IV. 1. 55 ....अतुनोः - IV. III. 135
देखें - पुजतुनो: IV. iii. 135
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... जन्...
-I. ill. 86
देखें - बुधयुक्नशमने 1. III. 86
... जन... - III. 1. 61
देखें - दीपजन III. 1. 61
जन...
- III. ii. 67
देखें – जनसन० III. it. 67
... जन... - III. iv. 72
देखें - गत्यर्थाकर्मक० III. I. 72
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... जन... - IV. 1. 43
देखें
... जन... - IV. Iv. 97
देखें - मतजनहलात् IV. Iv. 97 ... जन... - VI. 1. 186 देखें- धीडी० VI. 1. 186
प्रामजनबन्० IV. II. 43
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जन...
- VI. iv. 42
देखें- जनसनखनाम् VI. Iv. 42
जन...