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________________ छन्दसि छन्दसि - VII. 1. 27 (इतर शब्द से उत्तर सु तथा अम् के स्थान में) वेद-विषय (अद्ड् आदेश नहीं होता) । में 258 छन्दसि -VII. i. 38 (अपूर्व समास में क्त्वा के स्थान में क्त्वा तथा ल्यप् आदेश भी) वेद-विषय में (होता है)। छन्दसि -VII. i. 56 (श्री तथा ग्रामणी अङ्ग के आम् को) वेद-विषय में (नुट् का आगम होता है)। छन्दसि - VII. 1. 76 (अस्थि, दधि, सक्थि अङ्गों को) वेद-विषय में (भी अनङ् देखा जाता है)। छन्दसि - VII. 1. 83 (दृक्, स्ववस्, स्वतवस् अङ्गों को) वेद-विषय में (सु रहते नुम् आगम होता है)। छन्दसि -VII. i. 103 वेद- विषय में (ऋकारान्त धातु अङ्ग को बहुल करके इकारादेश होता है)। छन्दसि VII. ii. 31 (ह्र कौटिल्ये' धातु को निष्ठा परे रहते) वेद- विषय में (हु आदेश होता है)। छन्दसि - VII. iii. 97 1 (अस् तथा सिच् से उत्तर हलादि अपृक्त सार्वधातुक को बहुल करके) वेद-विषय में (ईट् आगम होता है) छन्दसि - VII. iv. 8 1 वेद-विषय में (चङ्परक णि परे रहते उपधा ॠवर्ण के स्थान में नित्य ही ऋकारादेश होता है) । छन्दसि - VII. iv. 35 (पुत्र शब्द को छोड़कर अवर्णान्त अङ्ग को) वेद-विषय में (क्यच् परे रहते जो कुछ कहा है, वह नहीं होता) । छन्दसि - VII. iv. 44 (ओहाक् अङ्ग को विकल्प से) वेद-विषय में ( क्त्वा प्रत्यय परे रहते 'हि' आदेश होता है ) । छन्दसि -- VII. iv. 64 (कृष् अङ्ग के अभ्यास को) वेद-विषय में (यङ् परे रहते चवर्गादेश नहीं होता) । - छन्दसि VII. iv. 78 वेद-विषय में (अभ्यास को बहुल करके श्लु. होने पर इकारादेश होता है) । छन्दसि छन्दसि - VIII. 1. 35 (हि से युक्त साकाङ्क्ष अनेक तिङन्त को भी तथा अपि ग्रहण से एक को भी कहीं कहीं अनुदात्त नहीं होता), वेदविषय में । छन्दसि - - VIII. 1. 56 ( यत्परक, हिपरक तथा तुपरक तिङ् को) वेद-विषय में (अनुदात्त नहीं होता)। छन्दसि -VIII. i. 64 ( वै तथा वाव - इनसे युक्त प्रथम तिङन्त को भी विकल्प से) वेद-विषय में (अनुदात्त नहीं होता)।. छन्दसि - VIII. ii. 15 (इवर्णान्त तथा रेफान्त शब्दों से उत्तर) वेद-विषय में (मतुप् को नकारादेश होता है ) । छन्दसि -VIII. ii. 61 (नसत्त, निषत्त, अनुत्त, प्रतूर्त, सूर्त, गूर्त वेद-विषय में (निपातन किये जाते है)। छन्दसि - VIII. ii. 70 — ये शब्द) (अम्नस्, ऊधस्, अवस् - इन पदों को) वेद- विषय में (दोनों प्रकार से अर्थात् रु एवं रेफ दोनों ही होते हैं)। छन्दसि - VIII. iii. 1 (मत्वन्त तथा वस्वन्त पद को संहिता में सम्बुद्धि परे रहते) वेद-विषय में (रु आदेश होता है)। छन्दसि - VII. iii. 49 ( प्र तथा आम्रेडित को छोड़कर जो कवर्ग तथा पवर्ग परे हों तो) वेद-विषय में (विसर्जनीय को विकल्प से सकारादेश होता है)। छन्दसि - VIII. iii. 105 (इण् तथा कवर्ग से उत्तर स्तुत तथा स्तोम के संकार को) वेद- विषय में कई आचार्यों के मत में मूर्धन्य आदेश होता है)। छन्दसि -VIII. iii. 119 (निवि तथा अभि उपसर्गों से उत्तर सकार को अट् का व्यवधान होने पर) वेद- विषय में (विकल्प से मूर्धन्य आदेश नहीं होता) ।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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