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...चते: -III. 1. 110
देखें-अक्लूपिचते. III. I. 110 के-III. II. 71 'चिज्' धातु से (अग्नि कर्म उपपद रहते ‘क्विप्' प्रत्यय होता है,) भूतकाल में। चेत् -I. ii. 65
(वृद्ध = गोत्र प्रत्ययान्त शब्द युवा प्रत्ययान्त के साथ शेष रह जाता है.) यदि (वृद्ध युव प्रत्ययनिमित्त ही भेद हो तो)। चेत् -I.ii. 55 (ततीया विभक्ति से युक्त सम्-पूर्वक दाण् धातु से भी आत्मनेपद होता है) यदि (वह तृतीया चतुर्थी के अर्थ में हो तो)।
चेत् -I. iii. 67 ' (अण्यन्तावस्था में जो कर्म. वही) यदि (ण्यन्तावस्था में कर्ता बन रहा हो, तो ण्यन्त धातु से आत्मनेपद होता है, आध्यान = अर्थात् उत्कण्ठापूर्वक स्मरण अर्थ को छोड़कर। चेत् - III. iii. 154 (पर्याप्तिविशिष्ट सम्भावन अर्थ में वर्तमान धातु से लिङ् प्रत्यय होता है,) यदि (अलम् शब्द का अप्रयोग सिद्ध हो रहा हो)। . चेत् - III. iv. 27
(अन्यथा, एवं, कथं, इत्यम् शब्दों के उपपद रहते का धातु से णमुल प्रत्यय होता है). यदि (कब का अप्रयोग सिद्ध हो)। चेत्-V.i. 114 (ततीयासमर्थ प्रातिपदिकों से 'समान' अर्थ में वति
रोम प्रत्यय होता है), यदि (वह समानता क्रिया की हो तो)। चेत् - V. iv. 10 (स्थान-शब्दान्त प्रातिपदिक से विकल्प से छ प्रत्यय होता है), यदि (समान स्थान वाले व्यक्ति द्वारा स्थानान्तपदप्रतिपा द्य तत्त्व अर्थवान् हो तो)। चेत् - VI. 1. 130
(स' के सु का लोप होता है, अच् परे रहते) यदि (लोप होने पर पाद की पूर्ति रही हो तो)।
...चेत्... - VIII. I. 30
देखें- यदिO VIII. 1. 30 चेत् - VIII. 1.51
(गत्यर्थक धातुओं के लोट् लकार से युक्त लुडन्त तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता),यदि (कारक सारा अन्य न हो तो)। ...चेतस्... - V. iv. 31
देखें- अर्मनस० V. iv. 51 ...चेति... - III ... 138
देखें -लिम्पविन्द III. 1. 138 चेल... - VI. 1. 126
देखें - चेलखेटO VI. ii. 126 चेलखेटकटुककाण्डम् - VI. ii. 126
चेल,खेट,कटुक,काण्ड- इन उत्तरपद शब्दों को निन्दा गम्यमान होने पर आधुदात्त होता है)। ...चेल.. - VI. iii. 42 .
देखें - घरूप० VI. ii. 42 चेले -III. iv. 33 'चेलवाची = वस्त्रवाची कर्म उपपद हों तो (वर्षा का प्रमाण गम्यमान होने पर ण्यन्त क्नूय धातु से णमुल प्रत्यय होता है)। चेष्टायाम् -II. iii. 12
चेष्टा जिनकी क्रिया हो,ऐसे (गत्यर्थक धातुओं के मार्गरहित कर्म में द्वितीया और चतुर्थी विभक्ति होती है)। ...चेष्ट्योः ... - VII. iv. 96 देखें- वेष्टिचेष्ट्यो: VII. iv.96 ..च ...चैत्रीभ्यः ... -IV.ii. 23
देखें-फाल्गुनीश्रवणाo IV. ii. 23 चो: - VIII. ii. 30
चवर्ग के स्थान में (कवर्ग आदेश होता है.झल परे रहते या पदान्त में)। चौ - VI. i. 216
चु परे रहते (पूर्व को अन्त उदात्त होता है)। चौ - VI. iii. 137. चु परे रहते (पूर्व अण को दीर्घ होता है)।