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चवाहाहैवयुक्ते
चवाहाहैवयुक्ते VIII. 1. 24 चवा, ह, अह, एव इनके योग में (षष्ठ्यन्त चतुर्थ्यन्त, द्वितीयान्त युष्मद् अस्मद् शब्दों को पूर्व सूत्रों से प्राप्त वाम्, नौ आदि आदेश नहीं होते) । चाक्रवर्मणस्य - VI. 1. 126
(प्लुत 'ई ३' अच् परे रहते) चाक्रवर्मण आचार्य के मत (अप्लुत के समान हो जाता है) ।
.... चाटु... - III. ii. 23
देखें- शब्दश्लोक० III. II. 23
चादयः - I. iv. 57
चादिगणपठित शब्द (निपातसंज्ञक होते हैं, यदि वे
द्रव्यवाची न हों तो)।
चादिलोपे VIII. 1. 63
चादियों के लोप होने पर (प्रथम तिङन्त को विकल्प करके अनुदात्त नहीं होता) ।
248
चादिषु - VIII. 1. 58
चादियों के परे रहते (भी गतिभिन्न पद से उत्तर तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता) ।
.... चानराटेषु - VI. II. 103
देखें - ग्रामजनपदा० VI. ii. 103
चानश् III. 1. 129
(ताच्छील्य, वयोवचन, शक्ति अर्थों में द्योतित होने पर धातु (से वर्तमान काल में) चानश् प्रत्यय होता है।
... चान्द्रायणम् - V. 1. 72
देखें - पारायणरावण० V. 1. 72
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चाप् - IV. 1. 74
(यडन्त प्रातिपदिकों से स्त्रीलिङ्ग में) चाप् प्रत्यय होता है।
1
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चाय: - VI. 1. 34
चायृ धातु को (वेदविषय में बहुल करके की आदेश हो जाता है)।
... चार्वादयः VI. ii. 160 देखें - कृत्योकेष्णुच् VI. 1. 160 चाहलोपे - VIII. 1. 62
चायें - II. ii. 29
'च' के अर्थ समाहार और इतरेतर योग में ( वर्त्तमान अनेक सुबन्त समास को प्राप्त होते हैं, और वह द्वन्द्व समास होता है।
च तथा अह शब्द का लोप होने पर (प्रथम तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता, यदि 'एव' शब्द वाक्य में अवधारण अर्थ में प्रयुक्त किया गया हो तो)। ...fa- V. ii. 33
देखें इनफ्टिय् VII. 33
चि... - VI. 1. 53
देखें - चिस्फुरो: VI. 1. 53
...चिक... - V. 1. 33
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देखें - इनच्पिटच्० . . 33 चिकचि - V. ii. 33
(नासिका का झुकाव ' अभिधेय हो तो नि उपसर्ग प्रातिपदिक से इनच् तथा पिटच् प्रत्यय होते हैं, सञ्ज्ञाविषय में तथा नि शब्द को यथासङ्ख्य करके प्रत्यय के साथसाथ) चिक तथा चि आदेश भी हो जाते हैं। चिकयामक: III. i. 42
चिकयामकः शब्द (चिञ् धातु से णि प्रत्यय द्वित्व आम् और कुत्व करके) वेद में विकल्प से निपातित है। (साथ ही अभ्युत्सादयामकः प्रजन्यामकः, रमयामकः, पावयांक्रियात्, विदामक्रन् शब्द भी वेदविषय में विकल्प से निपातित किये जाते हैं) ।
चायः
VI. i. 21
चायृ धातु को (यङ् प्रत्यय के परे रहते की आदेश होता चिण् - III. 1. 60
है)।
चिण्...
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चिकित्स्यः
V. ii. 92.
=
(क्षेत्रियच् शब्द का निपातन किया जाता है, दूसरे क्षेत्र शरीर में) चिकित्सा किये जाने योग्य अर्थ में
चिच्युषे - VI. 1.35
(वेदविषय में) चिच्युषे का निपातन किया जाता है।
(गत्यर्थक 'पद्' धातु से उत्तर कर्तृवाची लुङ् 'त' शब्द
परे रहते चिल के स्थान में) चिण आदेश होता है)। चिण् - III. 1. 66
(च्लि के स्थान में धातुमात्र से उत्तर भाव अथवा कर्मवाची लुङ् का 'त' शब्द परे रहते) चिण् आदेश होता है। faul... - VI. iv. 93
देखें विण्णामुलो: VI. Iv. 93
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