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च-VIII. iii. 64
च-VIII. iv. 17 (सित से पहले-पहले स्था इत्यादियों में अभ्यास का
__ (उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर नि के नकार को णकार व्यवधान होने पर भी मूर्धन्य आदेश होता है,) तथा
आदेश होता है; गद, नद, पत, पद, घुसञ्जक, मा, षो, हन्,
या,वा,द्रा,प्सा,वप,वह,शम्,चि एवं दिह धातुजी के परे (अभ्यास के सकार को भी मर्धन्य होता है)।
रहते) भी। च-VIII. iii. 68
च - VIII. iv. 24 (अव उपसर्ग से उत्तर) भी (स्तन्मुके सकार को आश्रयण __ (अन्तर् शब्द से उत्तर अयन शब्द के नकार थो) भी तथा समीपता अर्थ में मूर्धन्य आदेश होता है)। (णकारादेश होता है.देश का अभिधान न हो ते च -VIII. iii. 69
च-VIII. iv. 26 . (वि उपसर्ग से उत्तर) तथा चकार से: अव उपसर्ग से (धातु में स्थित निमित्त से उत्तर तथा उरु एवं षु शब्द उत्तर (भोजन अर्थ में स्वन धातु के सकार को मूर्धन्य से उत्तर नस् के नकार को) भी (वेद-विषय में णकार आदेश होता है.अडव्यवाय एवं अभ्यास-व्यवाय में भी)। आदेश होता है)। च - VIII. iii. 74
च-VIII. iv. 30
(इच् उपधावाले हलादि धातु से विहित जो कृत् प्रत्यय, (परि उपसर्ग से उत्तर) भी (स्कन्द् के सकार को विकल्प
तत्स्थ जो अच् से उत्तर नकार, उसको) भी (उपसर्ग में से मूर्धन्यादेश होता है)।
स्थित निमित्त से उत्तर विकल्प से पकारादेश होता है) च-VIII. 1. 94
च-VIII. iv. 38 (छन्द का नाम कहना हो तो) भी (विष्टार शब्द में षत्व
(क्षुम्नादिगणपठित शब्दों के नकार को) भी (णकारादेश निपातन किया गया है)।
नहीं होता)। च -VIII. iii. 98
च -VIII. iv. 46 (सषामादि शब्दों के सकार को) भी (मर्धन्य आदेश
___ (अच् से उत्तर यर् को विकल्प करके अच् परे न हो । होता है)।
तो) भी (द्वित्व हो जाता है)। च-VIII. iii. 109
च-VIII. iv.53 (पृतना तथा ऋत शब्द से उत्तर) भी (सह धातु के सकार (अभ्यास में वर्तमान झलों को चर् आदेश होता है,तथा को वेद-विषय में मूर्धन्य आदेश होता है)। चकार से जश्) भी होता है)। च-VIII. iii. 114
च-VIII. iv.54
(खर् परे रहते) भी (झलों को चर आदेश होता है)। (प्रतिस्तब्ध, निस्तब्ध शब्दों में) भी (मर्धन्याभाव निपा
चक्रीवत् -VIII. I. 12 तन है)।
चक्रीवत् शब्द का निपातन किया जाता है। च-VIII. iv. 11
चक्षिङ -II. iv.54 (पूर्वपद में स्थित निमित्त से उत्तर प्रातिपदिक के अन्त चक्षिक के स्थान में (ख्या आदेश होता है, आर्धधातुक में जो नकार तथा नुम् एवं विभक्ति में जो नकार उसको)
के विषय में)। भी (विकल्प से णकारादेश होता है)।
...चक्षुस्... -V.iv.51 च -VIII. iv. 13
देखें - अर्मनस्० V. iv. 51 (पूर्वपद में स्थित निमित्त से उत्तर कवर्गवान् शब्द उत्त
चङ्-III.1.48 रपद रहते) भी (प्रातिपदिकान्त. नम तथा विभक्ति के
___ण्यन्त धातु, श्रि, द्रु, और स्नु धातुओं से उत्तर कर्तृवाची नकार को णकार आदेश होता है)।
लुङ् परे रहते च्लि के स्थान में चङ् आदेश होता है)।
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