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च-VI. iii.91
अङ्ग की उपधा को दीर्घ हो जाता है)। (विष्वग् एवं देव शब्दों के) तथा (सर्वनाम शब्दों के च-VI. iv. 13 टिभाग को अद्रि आदेश होता है,वप्रत्ययान्त अश्रु धातु (सम्बनिभिन्न स विभक्ति के परे रहते) भी (इन, हन. के परे रहते)।
पूषन् तथा अर्थमन् अङ्गों की उपधा को दीर्घ होता है)। च -VI. iii. 101
च-VI. iv. 14 (रथ तथा वद शब्द उत्तरपद हो तो) भी (कु को कत् (धात-भिन्न अतु तथा अस् अन्तवाले अङ्ग की उपधा आदेश होता है।
को) भी (दीर्घ होता है, सम्बुद्धिभिन्न स विभक्ति परे च -VI. iii. 102
रहते)। (तृण शब्द उत्तरपद हो तो) भी (कु को कत् आदेश होता च-VI. iv. 18 है, जाति अभिधेय होने पर)।
(क्रम् अङ्ग की उपधा को) भी (झलादि क्त्वा प्रत्यय परे च -VI. ii. 106
रहते विकल्प से दीर्घ होता है)। (उष्ण शब्द उत्तरपद रहते कु शब्द को कव आदेश) भी च-VI. iv. 19 (होता है, एवं विकल्प से का आदेश भी होता है)।
(च्छ और व् के स्थान में यथासङ्ख्य करके श, और च -VI. iii. 107
ऊठ आदेश होते हैं. अनुनासिकादि प्रत्यय परे रहते) तथा (पथिन् शब्द उत्तरपद रहते) भी (वेद विषय में कु को (क्वि और झलादि कित, ङित् प्रत्ययों के परे रहते)। 'कव' तथा 'का' आदेश विकल्प करके होते है)। च-VI. iv. 20 . च-VI. iii. 119
(ज्वर, त्वर, सिवि, अव, मव् - इन अङ्गों के वकार) (शरादि शब्दों को) भी (सञ्जा-विषय में मतप परे रहते तथा (उपधा के स्थान में ऊ आदेश होता है; क्वि) तथा दीर्घ होता है)।
(झलादि एवं अनुनासिकादि प्रत्ययों के परे रहते)। च -VI. iii. 125
च-VI. iv. 26 (वेद -विषय में) भी (अष्टन् शब्द को दीर्घ होता है, (रङ्ग अङ्ग की उपधा के नकार का) भी (लोप होता है, उत्तरपद परे रहते)।
शप् परे रहते)। च - VI. iii. 129
च-VI. iv. 27 (मित्र शब्द उत्तरपद रहते) भी (ऋषि अभिधेय होने पर (भाववाची तथा करणवाची घ के परे रहते) भी (रज विश्व शब्द को दीर्घ हो जाता है)।
धातु की उपधा के नकार का लोप होता है)। च-VI. iii. 131
च-VI. iv. 33 (मन्त्र-विषय में प्रथमा से भिन्न विभक्ति के परे रहते (भङ्ग अङ्ग के नकार का लोप) भी (विकल्प से होता है. ओषधि शब्द को) भी (दीर्घ हो जाता है)।
चिण् प्रत्यय परे रहते)। च-VI. 1. 135
च - VI. iv. 39 (ऋचा-विषय में निपात को) भी (दीर्घ हो जाता है)। (क्तिच परे रहते अनुदात्तोपदेश, वनति तथा तनोति च-VI. iv.6
आदि अङ्गों के अनुनासिक का लोप) तथा (दीर्घ नहीं (तृ अङ्ग को) भी (नाम् परे रहते वेद-विषय में दोनों ।
होता)। प्रकार से अर्थात् दीर्घ एवं अदीर्घ देखा जाता है)। च-VI. iv. 45 च-VI. iv.8
(क्तिच् प्रत्यय परे रहते सन् अङ्गको आकारादेश हो (सम्बदिभिन्न सर्वनामस्थान के परे रहते) भी (नकारान्त जाता है) तथा (विकल्प से इसका लोप भी होना है)।