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प्रातिपदिक से 'सत्कारपूर्वक व्यापार', खरीदा हुआ','हो
खखत्री - V. ii. 5
(तृतीयासमर्थ सर्वचर्मन प्रातिपदिक से 'किया हुआ' अर्थ में) ख तथा खञ् प्रत्यय होते हैं। खच् - III. ii. 32 (प्रिय और वश कर्म उपपद रहते वद् धातु से) खच् प्रत्यय होता है। खचि - VI. iv. 94 . खच्परक (णि परे रहते अङ्ग की उपधा को हस्व होता
छ प्रत्यय) होता है। ख.. -V.ii.5
देखें - खखनौ v.ii.5 ...ख... -VII..2
देखें - फढख. VII.1.2 ख: -IV.i. 139 (कुल शब्द अन्त वाले तथा केवल कुल प्रातिपदिक से भी अपत्य अर्थ में) ख प्रत्यय होता है। ख: - IV. iv.78
(द्वितीयासमर्थ सर्वधुर प्रातिपदिक से 'ढोता है' अर्थ में) ख प्रत्यय होता है। . ख-v.i.9.
(चतुर्थीसमर्थ आत्मन, विश्वजन तथा भोगशब्द उत्तरपदवाले प्रातिपदिकों से 'हित' अर्थ में) ख प्रत्यय होता
खञ्- IV. iii.1
(युष्मद् तथा अस्मद् शब्दों से) खञ् (तथा चकार से छ) प्रत्यय (विकल्प से होते हैं.पक्ष में औत्सर्गिक अण होता
ख.-V.I. 32 - (अध्यर्द्ध शब्द पूर्ववाले तथा द्विगुसज्जक विंशतिक :' शब्दान्त प्रातिपदिक से 'तदर्हति पर्यन्त कथित अर्थों में) . ख प्रत्यय होता है।
ख. -v.i. 52. (द्वितीयासमर्थ आढक,आचित तथा पात्र प्रातिपदिक से 'संभव है. अवहरण करता है तथा पकाता है' अर्थों में विकल्प से) ख प्रत्यय होता है। ख-v.i.84 (द्वितीयासमर्थ समा प्रातिपदिक से ‘सत्कारपूर्वक
कारपूर्वक व्यापार','खरीदा हुआ', 'हो चुका' तथा 'होने वाला' इन अर्थों में) ख प्रत्यय होता है। ख -v.ii.6
(षष्ठीसमर्थ यथामख तथा सम्मख प्रातिपदिकों से 'दर्शन' = शीशा अर्थ में) ख प्रत्यय होता है। . ख-v.iv.7 (अषडक्ष, आशितंगु, अलंकर्म, अलंपुरुष शब्दों से तथा अधि शब्द उत्तरपद वाले प्रातिपदिकों से स्वार्थ में) ख प्रत्यय होता है।
ख -IV. iv.99 (सप्तमीसमर्थ प्रतिजनादि प्रातिपदिकों से साधु अर्थ में) खञ् प्रत्यय होता है। ख -v.i. 11 (चतुर्थीसमर्थ माणव तथा चरक प्रातिपदिकों से 'हित' अर्थ में) खब प्रत्यय होता है। खञ् - V. ii. 2 (षष्ठीसमर्थ धान्यविशेषवाची प्रातिपदिकों से 'उत्पत्तिस्थान' अभिधेय हो तो) खञ् प्रत्यय होता है, (यदि वह उत्पत्तिस्थान खेत हो तो)। खञ्-v.ii. 18
(भूतपर्व' अर्थ में वर्तमान गोष्ठ प्रातिपदिक से) खब प्रत्यय होता है। .खौ-IV.i. 141 देखें - अखबौ IV.i. 141 ...खजा-I.ii. 93
देखें- यत्खनौ IV.ii. 93 ...खनौ-V.1.70
देखें - घखत्री v.i. 70 ...खजौ-V.1.80 देखें- यत्खनौ V.1.80