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क्षियः
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क्षियः-VIII. 1.46
(दीर्घ) क्षि धातु से उत्तर (निष्ठा के तकार को नकारादेश होता है)। क्षिया..-VIII. 1. 104
देखें-क्षियाशी: VIII. II. 104 क्षियायाम् -VIII. 1.60
(ह इससे युक्त प्रथम तिङन्त विभक्ति को) धर्मोल्लंघन गम्यमान होने पर (अनुदात्त नहीं होता)। क्षियाशी प्रेवेषु-VIII. 1. 104
क्षिया= आचारोल्लंघन, आशीः तथा प्रैष = शाब्दप्रेरणा गम्यमान हो तो (साकाङ्क्ष तिङन्त की टि को स्वरित प्लुत होता है)। ... श्रीब... - VIII. 1.55
देखें-फुल्लक्षीय VIII. 1.55 ...धीर... -VII.1.51
देखें- अश्ववीर० VII.1.51 धीरात् - TV.1.19
(सप्तमीसमर्थ) क्षीर प्रातिपदिक से (संस्कृतं भक्षाः' अर्थ में ठञ् प्रत्यय होता है)। ६... - III. II. 25
देखें-शुश्रुव III. III. 25 शुद्रजन्तवः -II. N.
क्षुद्रजन्तु = नेवले से लेकर सूक्ष्म जीव,तद्वाची शब्दों का (द्वन्द एकवद् होता है)। क्षुद्रा...-IN. III. 118
देखें- खुद्राप्रमरक्टर० N. I. 118 शुद्राप्रमरक्टरपादपात् - IV. III. 118 (तृतीयासमर्थ) क्षुद्रा, अमर, वटर, पादप प्रातिपदिकों से (कृते' अर्थ में संज्ञाविषय गम्यमान होने पर अञ् प्रत्यय होता है)।
क्षुद्रा = छोटी मक्खी वटर = पामार, शठ ..बुद्राणाम् -VI. iv. 156 देखें- स्थूलदूर० VI. iv. 156
क्षुद्राभ्यः - IV.i. 131
क्षुद्रावाची प्रकृतियों से (अपत्य अर्थ में विकल्प से क् प्रत्यय होता है)। ...क्षुधोः - VII. ii. 52
देखें - वसतिक्षुधो: VII. ii. 52 क्षुब्ध..-VII. . 18
देखें - क्षुब्धस्वान्तः VII. ii. 18 बुमादिषु - VII. iv. 38
क्षुम्नादिगण में पठित शब्दों के (नकार को भी णकारादेश नहीं होता)। क्षुब्धस्वान्तध्वान्तलग्नम्लिष्टविरिब्धफाण्टबाढानि - VII. ii. 18
क्षुब्ध,स्वान्त, ध्वान्त, लग्न,म्लिष्ट,विरिब्ध, फाण्ट,बाढ - ये शब्द (निष्ठा परे रहते यथासङ्ख्य करके मन्थ, मनस. तमस, शक्त, अविस्पष्ट,स्वर, अनायास, भृशइन अर्थों में निपातन किये जाते है)। क्षुल्लक:-VI. ii. 31
(वैश्वदेव शब्द उत्तरपद रहते पूर्वपदस्थित) क्षुल्लक शब्द (तथा महान् शब्द को प्रकृतिस्वर होता है)।
क्षुल्लक = छोटा, क्षुद्र खुश्रुक -III. iii. 25
विपूर्वक) क्षु तथा श्र धातुओं से ( कर्तभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। ...क्षेत्र..-III. ii. 21
देखें-दिवाविभा० III. ii. 21 ...क्षेत्रज्ञ..- VII. iii. 30
देखें- शुचीश्वर० VII. i. 30 क्षेत्रियच् - V.ii. 92 'क्षेत्रियच्' शब्द को निपातन किया जाता है, (दूसरे शरीर में चिकित्सा किये जाने योग्य' अर्थ में)। क्षेत्रे -N.i:23
(काण्डशब्दान्त अनुपसर्जन द्विगुसंज्ञक प्रातिपदिक से तद्धित का लुक हो जाने पर स्त्रीलिङ्ग में) क्षेत्र वाच्य होने पर (डीप् प्रत्यय नहीं होता है)।