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विकृति
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विडति-VI. iv.98
(गम,हन,जन,खन, घस्- इन अङ्गों की उपधा का लोप हो जाता है, अङ्वर्जित अजादि) कित्,डित् प्रत्यय परे हो तो। विडति - VII. iv. 22
(यकारादि) कित् डित् प्रत्यय परे रहते (शीङ अङ्ग को 'अयङ् आदेश होता है)। क्त... -I.1.25
देखें- क्तवतवतू I. i. 25 ...क्त... -III. iv.70
देखें-कृत्यक्तखलाः III. iv. 70 ...क्त ... VI. ii. 144
देखें-थाथप VI. ii. 144 क्तः -III. II. 186 (जि जिसका इत्संज्ञक है,ऐसी धातु से वर्तमानकाल में) क्त प्रत्यय होता है। क्तः -III. iii. 114 (नपुंसकलिङ्ग भाव में धातुमात्र से) क्त प्रत्यय होता है। क्त -III. iv. 71
(क्रिया के आरम्भ के आदि क्षण में विहित जो) क्त प्रत्यय. (वह कर्ता तथा चकार से भावकर्म में भी होता
...क्तवतू -I.i. 25
देखें-क्तक्तवतू I.i. 25 क्तक्तवतू -I.i. 25
क्त और क्तवतु प्रत्यय (निष्ठासंज्ञक होते है)। क्तस्य-II. iii.67
'क्त' प्रत्यय के (योग में भी षष्ठी विभक्ति होती है, उसके वर्तमानकाल में विहित होने पर)। क्तात् - IV.i.51 (करणपूर्व अनुपसर्जन) क्तान्त प्रातिपदिक से (थोडे की आख्या गम्यमान हो तो स्त्रीलिङ्ग में ङीष् प्रत्यय होता है)। क्तात् - V.iv.4
क्तप्रत्यय अन्त वाले प्रातिपदिकों से (निरन्तर सम्बन्ध गम्यमान न हो तो कन् प्रत्यय होता है)। क्तिच्... - III. ii. 174
देखें-क्तिच्क्तौ III. iii. 174 क्तिचि - VI. iv. 39 क्तिच परे रहते (अनुदात्तोपदेश, वनति तथा तनोति आदि अङगों के अनुनासिक का लोप तथा दीर्घ नहीं होता है)। क्तिचि-VI. iv. 45
क्तिच प्रत्यय परे रहते (सन् अङ्ग को आकारादेश होता है तथा विकल्प से इसका लोप भी होता है)। क्तिच्चतौ -III. iii. 174
(आशीर्वाद विषय में धातु से) क्तिच् और क्त प्रत्यय (भी) होते हैं,(यदि समुदाय से संज्ञा प्रतीत हो तो)। क्तिन् -III. iii. 94
(धातुमात्र से स्त्रीलिङ्ग में कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में) क्तिन् प्रत्यय होता है। ...क्तिन्... - VI. ii. 151
देखें- मन्क्तिन VI. ii. 151 क्ते-VI. ii. 45
क्तान्त शब्द उत्तरपद रहते (भी चतुर्थ्यन्त पूर्वपद को प्रकृतिस्वर हो जाता है) क्ते-VI. 1. 61
क्तान्त उत्तरपद रहते (नित्य अर्थ है जिसका,ऐसे समास में विकल्प से पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है)।
क्तः -III. iv.76 (स्थित्यर्थक अकर्मक. गत्यर्थक तथा प्रत्यवसानार्थक धातुओं से विहित) जो क्त प्रत्यय,वह (अधिकरण कारक में होता है तथा चकार से भाव, कर्म और कर्ता में भी होता है)। क्तः-VI. ii. 145
(सु तथा उपमानवाची से उत्तर) क्तान्त उत्तरपद को (अन्तोदात्त होता है)। क्त - VI. ii. 170
(आच्छादनवाची शब्द को छोडकर जो जातिवाची कालवाची एवं सुखादि शब्द,उनसे उत्तर उत्तरपद)क्तान्त शब्द को (कृत, मित तथा प्रतिपन्न शब्दों को छोड़कर अन्तोदात्त होता है, बहुव्रीहि समास में)।