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कव्य...
कव्य.....
- III. ii. 65
देखें - कव्यपुरीष० III. II. 65 कव्यध्वरपृतनस्य - VII. iv. 39
कवि, अध्वर, पृतना इन अङ्गों का (क्यच् परे रहते लोप होता है, पादबद्ध मन्त्र के विषय में) ।
कव्यपुरीषपुरीष्येषु - III. 1. 65
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• कव्य, पुरीष, पुरीष्य ये (सुबन्त उपपद हों, तो (वेद विषय में वह धातु से ज्यु प्रत्यय होता है)।
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कष...
कशे: - VI. 1. 147
(प्रतिष्कश शब्द में प्रति पूर्वक) कश् धातु को (सुट् आगम तथा उसी सुद् के सकार को षत्वं निपातन किया जाता है।
देखें
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-III. ii. 42
III. ii. 143
कपलसo III. ii. 143
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कषः
कष् धातु से (सर्व, कूल, अन और करीब कर्म उपपद रहते 'खच्' प्रत्यय होता है ) ।
कषः III. iv. 34
(निमूल तथा समूल कर्म उपपद रहते) कष् धातु से ( णमुल् प्रत्यय होता है)।
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कषः
VII. ii. 22
को
(दुःख तथा गंभीर अर्थ में) कर हिंसायाम् धातु कष् ( निष्ठा परे रहते इट् आगम नहीं होता ) ।
153
कपलसकत्थत्रम्भ: -III. ii. 143
(विपूर्वक) कष्, लस्, कत्थ, स्रम्भ- इन धातुओं से ( तच्छीलादि कर्ता हो, तो वर्तमान काल में घिनुण् प्रत्यय होता है)।
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कवादिषु - III. Iv. 46
कषादि धातुओं में (यथाविधि अनुप्रयोग होता है, अर्थात् जिस धातु से णमुल् का विधान करेंगे, उसका ही पश्चात् प्रयोग होगा)।
... कषाययोः - VI. ii. 10
देखें - अध्वर्युकषाययो: VI. ii. 10
कष्टाय - III. 1. 14
चतुर्थी समर्थ कष्ट शब्द से (कुटिल अर्थ में क्यङ् प्रत्यय होता है)।
. कस... - VII. iv. 84
देखें
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वसुo VII. iv. 84
...कसः - III. ii. 175
देखें स्पेशभासo III. ii. 175
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... कसतेष्य - III. 1. 140
देखें- ज्वलितिकसन्तेभ्यः III. 1. 140
कसुन् – III. iv. 17
(भावलक्षण में वर्तमान सृपि तथा तृद् धातुओं से तुमर्थ
में) कसुन् प्रत्यय होता है, (वेद-विषय में)।
... कसुर - 1.1.39
देखें क्त्वातोसुन्कसुनः I. 1. 39 .... कसुनौ – III. iv. 13 देखें- तोसुन्कसुनौ III. iv. 13 ....कसे... - III. iv. 9
देखें - सेसेनसेo III. iv. 9 कस्कादिषु - VIII. iii. 48
कस्कादि-गणपठित शब्दों के (विसर्जनीय को भी यथायोग सकार अथवा षकार आदेश होता हैः कवर्ग, पवर्ग परे रहते) ।
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कस्य - IV. ii. 24
'क' देवतावाची प्रातिपदिक से (षष्ठयर्थ में अण् प्रत्यय होता है) तथा 'क' को (प्रत्यय के साथ साथ इकारान्तादेश भी होता है।
कंसीय....
कस्य --- V. iii. 72
ककारान्त अव्यय को (अकच् प्रत्यय के साथ साथ दकारादेश भी होता है) ।
कंस... - VI. ii. 122
देखें - कंसमन्यo VI. ii. 122
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कंस... - VIII. iii. 46
देखें ककमि० VIII. III. 46 कंसमन्वशूर्पपाय्यकाण्डम् - VI. ii. 122
कंस, मन्य, शूर्प, पाय्य, काण्ड इन उत्तरपद शब्दों को (द्विगु समास में आद्युदात्त होता है) ।
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कंसात् - V. 1. 25
कंस प्रातिपदिक से (तदर्हति' पर्यन्त कथित अर्थों में टिठन् प्रत्यय होता है)।
कंसीय... - IV. iii. 165
देखें - कंसीयपरशव्ययोः IV. iii. 165