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ऐषमस्...
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ओत्
ऐषमस्... - IV.ii. 104
देखें - ऐषमोहःश्वस: IV.ii. 104 ...ऐषमस्... - v. iii. 22
देखें - सद्य:परुत v. iii. 22 ऐषमोहाःश्वस: - IV.ii. 104
ऐषमस, हास, श्वस् प्रातिपदिकों से (विकल्प से त्यप् प्रत्यय होता है)।
ऐषमः = इस वर्ष में। ...ऐषकार्यादिभ्यः - IV.ii. 53
देखें - भौरिक्याद्यैषु० IV. ii. 53 ऐस् - VII. i.9
(अकारान्त अङ्ग से उत्तर भिस् के स्थान में) ऐस् आदेश होता है।
ओ-प्रत्याहारसूत्र II
- आचार्य पाणिनि द्वारा अपने ततीय प्रत्याहार सूत्र में पठित द्वितीय वर्ण,जो अपने सम्पूर्ण बारह भेदों का ग्राहक होता है।
-पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का सातवाँ वर्ण। . ओ-IV.iv. 108
(सप्तमीसमर्थ समानोदर प्रातिपदिक से 'शयन किया हुआ' अर्थ में यत् प्रत्यय होता है, तथा समानोदर शब्द के) ओकार को (उदात्त होता है)। ओ: -III. I. 125
उवर्णान्त धातु से (आवश्यक द्योतित होने पर ण्यत् प्रत्यय होता है)। ...ओ: - III. iii. 57 .
देखें - ऋदोः III. iii. 57 ओ: - IV. ii. 70 (प्रथमा: ततीया तथा षष्ठीसमर्थ) उवर्णान्त प्रातिपदिकों से (उपरिकथित चारों अर्थों में अञ् प्रत्यय होता है)। ओ: - IV.ii. 118
उवर्णान्त (देशवाची प्रातिपदिकों) से (शैषिक ठत्र प्रत्यय होता है)। ओ: – IV. ii. 136 (षष्ठीसमर्थ) उवर्णान्त प्रातिपदिक से विकार और अवयव अर्थों में अञ् प्रत्यय होता है)। ओ:-VI. iv.83 (धातु का अवयव,संयोग पूर्व नहीं है। जिस उवर्ण के तदन्त (अनेकाच) अङ्गको (अजादि सुप परे रहते यणादेश होता है)।
ओ: - VI. iv. 146 (भसज्ज्ञक) उवर्णान्त अङ्ग को (गण होता है.तद्धित परे रहते)। ओ: - VII. iv. 80
(अवर्णपरक पवर्ग,यण तथा जकार पर वाले) उवर्णान्त (अभ्यास) को (इकारादेश होता है, सन् परे रहते)। ओक:-VII. iii.64. (उच समवाये' धातु से क प्रत्यय परे रहते) ओक शब्द निपातन किया जाता है। ओजःसहोम्भसा - Iv.iv. 27
(तृतीयासमर्थ) ओजस,सहस, अम्भस प्रातिपदिकों से (व्यवहार करता है' अर्थ में ठक् प्रत्यय होता है)। ओजःसहोम्भस्तमस: - VI. iii. 3
ओजस्, सहस, अम्भस् तथा तमस् शब्दों से उत्तर (तृतीया विभक्ति का उत्तरपद परे रहते अलुक होता है)। ओजस... - IV. iv. 27 देखें- ओजःसहोम्भसा IV. iv. 27 ओजस्... - VI. ii.3 देखें - ओजःसहोम्भस्o VI. iii. 3 ओजस: - IV. iv. 130
ओजस प्रातिपदिक से (मत्वर्थ में यत और ख प्रत्यय होते है; दिन अभिधेय हो तो.वेद विषय में)। ओत् -I.i. 15
ओकारान्त (निपात प्रगृह्यसञ्जक होता है)। ओत् -VI. iii. 111 (ढकार और रेफ का लोप होने पर सह तथा वह धातु के अवर्ण को) ओकारादेश होता है।