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ऋताम्
ऋदशः -VII. iv. 16
ऋषि... -IV.i. 114 ऋवर्णान्त तथा दृशिर् अङ्ग को (अङ् परे रहते गुण देखें - ऋष्यन्धकवृष्णि IV.i. 114 होता है)।
ऋषिदेवतयोः - III. ii. 186 ऋदोः -III. iii. 57
(पून धातु से) ऋषिवाची (करण) तथा देवतावाची (कर्ता) ऋकारान्त तथा उवर्णान्त धातुओं से (कर्तृभिन्न कारक में (डत्र प्रत्यय होता है. वर्तमान काल में)। संज्ञा तथा भाव में अप प्रत्यय होता है)।
ऋषिभ्याम् - IV. iii. 103 ऋद्धनोः -VII. ii. 70
(तृतीयासमर्थ) ऋषिवाची (काश्यप और कौशिक) ऋकारान्त तथा हन् धातु के (स्य को इट् आगम होता.
प्रातिपदिकों से (प्रोक्त अर्थ में णिनि प्रत्यय होता है)। ...ऋय.. -VII. ii. 49
ऋषी-VI.i. 148 देखें-इवन्तर्धo VII. 1.49
(प्रस्कण्व तथा हरिश्चन्द्र शब्द में सुट का निपातन किया ...ऋधाम् - VII. iv.55
जाता है),ऋषि अभिधेय हो तो। देखें-आपज्ञप्य॒धाम् VII. iv.55
ऋषः - IV. iii. 69 ऋनेभ्यः - IV.i.5
(षष्ठी तथा सप्तमीसमर्थ व्याख्यातव्यनाम) ऋषिवाची ऋकारान्त तथा नकारान्त प्रातिपदिकों से (स्त्रीलिङ्ग में प्रातिपदिकों से (भव,व्याख्यान अर्थों में अध्याय गम्यमान ङीप प्रत्यय होता है)।
होने पर ही ठञ् प्रत्यय होता है)। ...ऋभुक्षाम् -VII. i. 85
ऋषौ - IV.iv.96 देखें - पथिमध्यभुक्षाम् VII. 1. 85
(षष्ठीसमर्थ हृदय शब्द से बन्धन अर्थ में भी) वेद अभि...ऋप्रय.. - IV.ii. 79
धेय होने पर (यत् प्रत्यय होता है)। देखें- अरीहणकृशाश्व० IV. 1.79
ऋषौ-VI. iii. 129 ऋयम... -V.i. 14 देखें - ऋषभोपानहो: V.i. 14
(मित्र शब्द उपपद रहते भी) ऋषि अभिधेय होने पर ...सभेभ्यः - V. iii. 91
(विश्व शब्द को दीर्घ हो जाता है)। . देखें- वत्सोक्षा० V. iii. 91
ऋष्यन्धकवृष्णिकुरुभ्यः - IV.i. 114 ऋषभोपानहो: - V.i. 14.
ऋषिवाची तथा अन्धक, वृष्णि और कुरु वंश वाले (चतुर्थीसमर्थ विकृतिवाची) ऋषभ और उपानह प्राति- समर्थ प्रातिपदिकों से (भी अपत्य अर्थ में अण् प्रत्यय पदिकों से (उसकी विकृति के लिए प्रकृति' अभिधेय होता है)। होने पर 'हित' अर्थ में ज्य प्रत्यय होता है)।
ऋहलो: - III.i. 124 ऋषि... -III. ii. 186
ऋवर्णान्त और हलन्त धातुओं से (ण्यत् प्रत्यय होता देखें- ऋषिदेवतयोः III. ii. 186
ऋत्... - III. iii. 57
देखें - ऋदोः III. iii. 57 ऋतः -VII. I. 100
ऋकारान्त (धातु अङ्ग) को (इकारादेश होता है)।
...ऋत: - VII. ii. 38
देखें-वृत: VIII. ii. 38 ...ऋताम् - VII. iv. 11
देखें - ऋच्छत्यृताम् VII. iv. 11