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________________ ऋचि 129 करत ऋचि -VII. iv. 39 ऋत् -VII. iv.7 (कवि, अध्वर, पृतना - इन अङ्गों को क्यच परे रहते . (चङ्परक णि परे रहते अङ्ग की उपधा अवर्ण के स्थान लोप होता है).पादबद्ध मन्त्र के विषय में। में विकल्प से) ऋकारादेश होता है। ...ऋच्छ... - VII. iii. 78 ऋत्... - VIII. iv. 25 देखें-पिबजिघ्र VII. iii. 78 देखें-ऋदवग्रहात् VIII. iv. 25 ऋच्छति-VII. iv. 11 ...ऋत: -I. ii. 24 देखें - ऋच्छत्यताम् VII. iv. 11 देखें-वञ्चिलुच्यतः-I. ii. 24 ऋच्छत्यताम् - VII. iv. 11 ऋतः - IV. iii. 78 ऋच्छ तथा ऋकारान्त अङ्गों को लिट परे रहते गण (पञ्चमीसमर्थ विद्या तथा योनि-सम्बन्धवाची) ऋकारान्त होता है)। प्रातिपदिकों से (आगत' अर्थ में ठञ् प्रत्यय होता है)। ...ऋच्छिभ्याम् -I. iii. 29 . ऋतः-IV. iv.49 देखें - गम्वृच्छिभ्याम् I. iii. 29 (षष्ठीसमर्थ) ऋकारान्त प्रातिपदिक से (न्याय्य व्यवहार ऋजो: - VI. iv. 162 अर्थ में अञ् प्रत्यय होता है)। ऋजु अङ्ग के (ऋकार के स्थान में विकल्प से आटेश ...ऋत: - V. iv. 153 होता है; वेद विषय में; इष्ठन्,इमनिच, ईयसुन् परे रहते)। देखें-नहतः V. iv. 153 ऋत: - V.iv. 158 ...ऋण... -IH. iii. 111 (बहुव्रीहि समास में) ऋवर्णान्त शब्दों से (वेदविषय में *देखें-पर्यायाहर्णोत्पत्तिषु III. iii. 111 समासान्त कप् प्रत्यय नहीं होता)। ऋणम् - VIII. ii. 60 ऋत: -VI.i. 107 ऋणम् शब्द में ऋ धातु से उत्तर क्त के तकार को ऋकार से उत्तर (ङसि तथा ङस् का अकार हो तो पूर्वपर नकारादेश निपातन है,(आधमर्ण्य विषय में)। के स्थान में उकारादेश होता है.संहिता के विषय में)। ऋणे-II. 1. 42 ऋत: -VI. iii. 22 ऋण = कर्जा गम्यमान होने पर (कृत्य प्रत्ययान्त के साथ (विद्याकृत सम्बन्धवाची तथा योनिकृत सम्बन्धवाची) सप्तम्यन्त का तत्पुरुष समास होता है)। ऋकारान्त शब्दों से उत्तर (षष्ठी का उत्तरपद परे रहते अलुक ऋणे-IIii. 24 होता है)। (कर्तृभिन्न हेतुवाची शब्द में) ऋण वाच्य होने पर (पञ्चमी ऋतः -VI. iii. 24 विभक्ति होती है)। (विद्या तथा योनि सम्बन्धवाची) ऋकारान्त शब्दों के ऋणे - IV. iii. 47 (द्वन्द्व समास में उत्तरपद परे रहते अन आदेश होता है)। (सप्तमीसमर्थ कालवाची प्रातिपदिकों से देने योग्य है' ऋत: - VI. iv. 161 कहना हो और) ऋण अभिधेय हो तो (यथाविहित प्रत्यय __ (हल् आदि वाले भसज्ञक अङ्ग के लघु) ऋकार के स्थान होता है)। में (र आदेश होता है; इष्ठन, इमनिच तथा ईयसुन परे ऋत्... - IV.i.5 रहते)। देखें-ऋनेभ्यः IV.i.5 ऋतः -VII. ii. 43 ...ऋत्... - Iv.iii. 72 (संयोग है आदि में जिसके,ऐसे) ऋकारान्त धातु से उत्तर देखें-द्ववजब्राह्मण IV. iii. 72 (भी आत्मनेपदपरक लिङ् सिच्को विकल्प से इट् आगम ऋत्... - VII. 1. 94 होता है)। देखें-ऋदुशन VII. i.94 ऋत: -VII. ii.63 ऋत्... - VII. ii. 70 (तास् परे रहते नित्य अनिट), ऋकारान्त धातु से उत्तर . देखें-ऋद्धनो: VII. ii. 70 (थल को तास् के समान ही इट् आगम नहीं होता,भारद्वाज आचार्य के मत में)।
SR No.016112
Book TitleAshtadhyayi Padanukram Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAvanindar Kumar
PublisherParimal Publication
Publication Year1996
Total Pages600
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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