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उपान्यध्यावसः
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उमा...
उभयथा - VIII. ii. 70
(अम्नस, ऊघस्, अवस् पदों को वेद-विषय में) दोनों प्रकार से अर्थात रु एवं रेफ दोनों ही होते है। उभयथा-VIII. iii. 8
(नकारान्त पद को अम्परक छव् प्रत्याहार परे रहते पादयुक्त मन्त्रों में) दोनों प्रकार से होता है, अर्थात् एक पक्ष में रु एवं दूसरे पक्ष में नकार ही रहता है। उभयप्राप्तौ-II. iii. 66
(जिस कृदन्त के योग में कर्ता और कर्म) दोनों में (एक साथ षष्ठी विभक्ति की) प्राप्ति हो (वहाँ कर्म कारक में ही षष्ठी विभक्ति होती है, कर्ता में नहीं)। . ....उभयेधुस् -V. iii. 22 .
देखें- सद्य-पस्त० V. iii. 22 उभयेषाम् -VI.i. 17
(लिट् लकार के परे रहते) दोनों अर्थात् वचिस्वपियजादि तथा ग्रहिज्यादियों के (अभ्यास को सम्प्रसारण हो जाता
उपान्वध्यावस: -I. iv. 48
उप, अनु, अधि और आङ्पूर्वक वस् का (जो आधार, वह कर्मसञ्जक होता है)। ...उपाभ्याम् -I. iii. 42
देखें-प्रोपाभ्याम् I. ii. 42 ...उपाभ्याम् -I. iii. 64
देखें-प्रोपाभ्याम् I. iii.64 उपे-III. ii. 73
उप उपपद रहते (यज् धातु से छन्द विषय में विच् प्रत्यय होता है)। उपेयिवान् -III. 1. 109
उपेयिवान् शब्द निपातन से सिद्ध होता है। .. उपोत्तमम् - VI. 1. 174
र (षट्सज्जक, त्रि तथा चतुर शब्द से उत्पन्न झलादि विभक्ति; तदन्त शब्द में ) उपोत्तम= तीन या तीन से अधिक स्वरों वाले शब्दों के अन्त्य अक्षर के समीपवाला पूर्व वर्ण (उदात्त होता है)। उपोत्तमम् - VI. 1. 211 (रेफ इत् वाले शब्द के) उपोत्तम= तीन या तीन से अधिक स्वरों वाले शब्दों के अन्त्य अक्षर के समीपवाले पूर्व वर्ण को (उदात्त होता है)। ...उपोत्तमयोः - IV. 1.78 .
देखें - गुरूपोत्तमयोः IV.i. 78 उप्ते -IV. ii. 44
(सप्तमीसमर्थ कालवाची प्रातिपदिकों से) बोया हुआ अर्थ में (भी यथाविहित प्रत्यय होता है)। उभयथा-III. iv. 117
(वेदविषय में) दोनों सार्वधातुक, आर्धधातुक संज्ञायें होती है; अर्थात् जिसकी सार्वधातुक संज्ञा कही है,उसकी आर्धधातुक संज्ञा और जिसकी आर्धधातुक संज्ञा कही है, उसकी सार्वधातुक संज्ञा होती है। उभयथा -VI. iv.5 . (वेदविषय में तिस.चतस अङ्गको) दोनों प्रकार से (देखा
जाता है - दीर्घ भी और ह्रस्व भी)। उभयथा - VI. iv. 86
(भू तथा सुधी अों को वेद-विषय में) दोनों प्रकार से देखा जाता है, अर्थात् यणादेश भी होता है तथा नहीं भी होता। न होने की स्थिति में इयङ्,उवङ् आदेश होते हैं।
उभात् -V.ii.44
(प्रथमासमर्थ) उभप्रातिपदिक से उत्तर (षष्ठ्यर्थ में नित्यही तयप् के स्थान में अयच् आदेश होता है और वह अयच् आधुदात्त होता है)। उभाभ्याम् - IV.i. 13 .
दोनों से अर्थात् ऊपर कहे गये मन्नन्त प्रातिपदिकों से तथा बहुव्रीहि समास में जो अनन्त प्रातिपदिक, उनसे (स्त्रीलिंग में विकल्प से डाप् प्रत्यय होता है)। उभे -VI.1.5
(जो द्वित्वरूप से कहे गये) वे दोनों (अभ्यस्तसज्ज्ञक होते है)। उभे - VI. ii. 140
(वनस्पत्यादि समस्त शब्दों में)दोनों = पूर्व तथा उत्तरपद को (एक साथ प्रकृतिस्वर होता है)। उभौ-VIII. iv. 20
(उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर अभ्याससहित अन धातु के) दोनों नकारों को (णकार आदेश होता है)। उम् - VII. iv. 20
(वच् अङ्ग को अङ् परे रहते) उम् आगम होता है। उमा... - Iv.iii. 155 देखें - उमोर्णयोः IV. iii. 155