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इत् - VII. 1.76
(हुम आदि तीन धातुओं के अभ्यास को) इकारादेश होता है। इत्... - VIII. II. 106
देखें-इदती VIII. 1. 106 इत्... -VIII. 1. 107
देखें-दतो: VIII. 1. 107 इत्.. - VIII. iii. 41
देखें- दुपयस्य VIII. iii. 41 इत:-III. iv.97
. (परस्मैपद विषय में लोट् लकार-सम्बन्धी) इकारका(भी विकल्प से लोप हो जाता है)। . इत:-III. iv. 100
(डितलकारसम्बन्धी) इकार का (भी नित्य ही लोप हो जाता है)। इत:-IV.1.65
इकारान्त (अनुपसर्जन मनुष्यजातिवाची) शब्द से (स्त्रीलिंग में ङीष् प्रत्यय होता है)। इत: - IV.1. 122
इकारान्त (अनिवन्त व्यच) प्रतिपदिकों से (भी अपत्य अर्थ में ढक् प्रत्यय होता है)। इत:-VII.1.86
(पथिन्,मथिन् तथा ऋभुक्षिन् अङ्ग के) इकार के स्थान में (अकारादेश होता है, सर्वनामस्थान परे रहते)। इतन् -V.ii. 36
(प्रथमासमर्थ संजात समानाधिकरण वाले तारकादि प्रातिपदिकों से षष्ठयर्थ में) इतच प्रत्यय होता है। ...इतर.. -II. 11.29
देखें-अन्यारादितरते. II. 11.29 इतरात् -VII. 1.27
इतर शब्द से उत्तर (सु तथा अम् के स्थान में वेद-विषय में अद्ड् आदेश नहीं होता है)। इतराय:-.ili.14
(सप्तमी और पञ्चमी से) अतिरिक्त अन्य (भी) जो (विभक्ति), तदन्त शब्दों से (भी तसिलादि प्रत्यय देखे जाते है)। इतरेतर... -I. iii. 16
देखें - इतरेतरान्योन्योपपदात् I. II. 16
इतरेतरान्योन्योपपदात् -I. ill. 16
इतरेतर एवं अयोन्य शब्द उपपद वाले धातु से (भी कर्मव्यतिहार अर्थ में आत्मनेपद नहीं होता)। . ...इतरेधुस्... - V. ii. 22
देखें-सद्य-परुत्० V. iii. 22 . इता-I.i.62
(आदिवर्ण अन्तिम) इत्संज्ञक वर्ण के साथ मिल कर तन्मध्यगत वर्षों का एवं स्वस्वरूप का ग्रहण कराते है)। इति -I.1.43
न अर्थात् निषेध और वा अर्थात् विकल्प - इन अर्थों की विभाषा संज्ञा होती है। इति -I.1.65
सप्तमी विभक्ति से निर्देश किया हुआ जो शब्द हो, . उससे अव्यवहित पूर्व को ही कार्य होता है। इति-I.1.66
पञ्चमीविभक्ति से निर्दिष्ट जो शब्द,उससे उत्तर को कार्य होता है। - इति - II. II. 27
सप्तम्यन्त तथा तृतीयान्त समानरूप वाले सुबन्त परस्पर इदम् ='यह' अर्थ में विकल्प से समास को प्राप्त होते है,
और वह बहुव्रीहि समास होता है। .. इति-II. 1. 28
तुल्ययोग में वर्तमान सह- यह अव्यय तृतीयान्त सुबन्त के साथ समास को प्राप्त होता है और वह बहुव्रीहि समास होता है। इति-III.1.42
अभ्युत्सादयामकः, प्रजनयामकः, चिकयामकः, रमयामकः,पावयांक्रियात् तथा विदामक्रन्-ये पद वेद-विषय में विकल्प से निपातित होते हैं। इति-III. 1. 41 विदाकुर्वन्तु यह रूप निपातन किया जाता है,विकल्प करके। इति-III. 11. 154
पर्याप्तिविशिष्ट सम्भावन अर्थ में वर्तमान धातु से लिङ् प्रत्यय होता है, यदि अलम् शब्द का अप्रयोग सिद्ध हो रहा हो। इति -V.1.62
सखी तथा अशिश्वी-ये शब्द भाषा विषय में स्त्रीलिंग में डीप प्रत्ययान्त निपातन किये जाते है। .