________________
॥ श्री गौतमस्वामिने नमः ॥
॥ श्री कुशलगुरुदेवाय नमः ॥
॥ श्री जिनमणिसागरसूरिपादपद्मेभ्यो नमः ॥
खरतरगच्छ साहित्य कोश
१. अगड़दत्त चौपाई, पुण्यनिधानगणि / विमलोदयगणि भावहर्षीय, रास चौपई, राजस्थानी, १७०३ वैरागर,‘आदि–परमेसर धुरि प्रणमि करी..., अन्त-संवत गुण नभ मुनि शसि वरसई...', अ., उ. जैन गुर्जर कविओ भाग - ३, पृ. ११३९
२. अगड़दत्त प्रबन्ध, श्रीसुन्दरगणि / हर्षविमलगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १६६६ (१६३६), 'आदि–परम पुरुष परमेष्ठि जिन ..., अन्त - द्रव्यत भावत जागिइए...', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर, उ. जैन गुर्जर कविओ भाग - ३, पृ. ९१५
३. अगड़दत्त रास, कुशललाभ उ० / अभयधर्म उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १६२५ वीरमपुर, ' आदि - पास जिणेसर पाय नमी ..., अन्त - तिह हुंती चविउ उत्तम ठांमि...', अ., उ. जैन गुर्जर कवि भाग-३, पृ. ६८६
४. अगड़दत्त रास, गुणविनयोपाध्याय / जयसोम उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १७वीं, 'आदिपणमिय पंचम सुमति जिन...', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर
५. अगड़दत्त रास, ललितकीर्त्तिगणि / लब्धिकल्लोल उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १६७९ भुजनगर 'आदि- नाभि महीपति सिरितिलउ..., अन्त - संवत् सोल इगिणासी वच्छरइरे श्री भुजनगर मझारि...', अ., उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-१, पृ. ५०८
६. अघटकुमार चौपाई, मतिकीर्त्ति उ० / गुणविनयोपाध्याय, रास चौपई, राजस्थानी, १६७४ आगरा, ‘आदि–आसापूरण पास प्रभु..., अन्त - क्रमि दीक्षा ले सिवपुर गयउ...', अ., उ. जैन कवि भाग-३, पृ. १०६८
७. अघटकुमार महाधवराजा चौपाई, पुण्यशीलगणि / रामविजय उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १९वीं, अ., ह. कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा १२४३
Jain Education International
८. अघटित राजर्षि चौपाई, भुवनकीर्त्ति उ० / ज्ञानमन्दिर उ०, रास चौपई, राजस्थानी, लवेरा, 'अन्त- सोलसइ सतसट्ठइ संवते...', अ., ह. खरतरगच्छ ज्ञान भं., जयपुर ९. अङ्कप्रस्तार, लाभवर्द्धनगणि / शान्तिहर्षगणि, ज्योतिष, राजस्थानी, १७६१ गूढ़ा, अ.
खरतरगच्छ साहित्य कोश
For Personal & Private Use Only
१६६७
3
www.jainelibrary.org