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प्रकाशकों का भी जिनका मैंने उल्लेख किया है उन सबका मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ ।
ग्रन्थ और परम्पराओं के चिन्तक एवं लेखक डॉ० शिवप्रसाद (वाराणसी) का मुझे जो सहयोग मिला है उसके लिए उन्हें साधुवाद और आशीर्वाद ।
माननीय उपाध्याय श्री भुवनचन्द्रजी महाराज का भी मैं ऋणी हूँ जिनकी प्रेरणा से नानीखाखर, कोडाय, माण्डवी और खंभात के ज्ञान भण्डारों की सूचियों का अवलोकन सुलभ हुआ और पार्श्वचन्द्रसूरि , खंभात के ज्ञान भण्डारस्थ दो प्रतियों की जीरोक्स कॉपी भी व्यवस्थापकों द्वारा प्राप्त हो सकी। मेरे आत्मीय महोपाध्याय श्री ललितप्रभसागरजी का भी मैं आभारी हूँ जिन्होंने इस ग्रन्थ का साङ्गोपाङ्ग अवलोकन कर भूमिका लिखी ।
गच्छ,
खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास, खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह और खरतरगच्छ साहित्य कोष के प्रकाशन की योजना विशाल और महत्वपूर्ण थी इस योजना में लगभग ९-१० लाख रूपये व्यय होने के अनुमान था फिर भी प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर के संस्थापक श्री डी० आर० मेहता ने इसे मुक्त हृदय से प्राकृत भारती की प्रकाशन योजना में स्वीकार किया और उनकी सतत् प्रेरणा रही की मैं इस कार्य को शीघ्र ही पूर्ण करूँ, अतः मैं उन्हें हृदय से साधुवाद देता हूँ ।
एम०एस०पी०एस० जी० चेरिटेबल ट्रस्ट के मैंनेजिंग ट्रस्टी श्री मंजुल जैन ने इसको संयुक्त प्रकाशन के रूप में सहयोग देकर मेरे इस कार्य को प्रगति प्रदान की है, उसके लिए मैं इनके प्रति भी आभार व्यक्त करता हूँ।
मेरे सन्मित्र डॉ० पारस सूर्या को भी धन्यवाद देता हूँ जिनकी स्वास्थ्य सेवाओं के कारण ही मैं साहित्य कार्यों में निरन्तर प्रगति कर रहा हूँ ।
अन्त में आयुष्मान मंजुल, पुत्रवधु नीलम, पुत्र विशाल, पौत्री तितिक्षा और पौत्र वर्धमान के स्नेह, समर्पण और सहयोग के लिए ढेर सारे साधुवाद और अन्तरङ्ग आशीर्वाद । लेजर टाईप सेटिंग के लिए सागर सेठी को भी आशीर्वाद प्रदान करता हूँ ।
जयपुर
२६ जनवरी २००६
XLVIII
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म० विनयसागर
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