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अप्रतिम कार्य
साहित्य वाचस्पति महोपाध्याय विनयसागरजी ने आचार्यश्री जिनेश्वरसूरिजी से प्रारम्भ हुई खरतरगच्छ की अविछिन्न परम्परा विषयक समस्त सामग्री को तीन खण्डों में विभाजित कर एक अतुलनीय, अनूठा कार्य किया है। इनमें से 'खरतरगच्छ का इतिहास' और 'खरतरगच्छ प्रतिष्ठा लेख संग्रह' नामक दो खण्ड क्रमशः २००४ और २००५ में प्रकाशित हो चुके हैं। तीसरा खण्ड 'खरतरगच्छ साहित्य कोश' प्रकाशित हो रहा है।
यह निर्विवाद है कि खरतरगच्छ के उद्भव काल से आज तक इस गच्छ के प्रतिष्ठित विद्वानों ने विविध विषयों और विभिन्न भाषाओं में अपार साहित्य सृजन किया है। महोपाध्याय विनयसागरजी ने 'खरतरगच्छ साहित्य कोश' का सम्पादन करके एक अप्रतिम कार्य किया है। इसमें परिणामस्वरूप साहित्य-सूचनाएँ सुलभ एवं प्रमाणिक बन गई हैं। अध्ययनार्थी और शोधार्थी के लिए तो यह कोश प्रकाश स्तम्भ है ही, साथ ही अन्य गच्छों के विद्वानों के लिए दिशा सूचक यंत्र की भाँति मार्गदर्शक भी। तीन खण्डों में विभक्त यह साहित्य कोश ज्ञान-पिपासा को संस्तुष्ट पर सकेगा, ऐसा निश्चल विश्वास है। यह कहना अप्रासंगिक नहीं होगा कि खरतरगच्छ की उपलब्ध सामग्री के आलोक में महोपाध्याय विनयसागरजी खरतरगच्छ के उपासकों के विभिन्न सामाजिक दायित्वों के विषय में लिखेंगे तो यह एक प्रामाणिक और प्रेरणादायी दस्तावेज बन जायेगा।
जयपुर
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डॉ० कमलचन्द सोगाणी