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३. खरतरगच्छ साहित्य कोश:- खरतरगच्छ के उद्भव काल से लेकर आज तक के मनीषी विद्वानों ने विविध विधाओं पर और विविध भाषाओं में जो साहित्य सर्जन किया है उसका इसमें समावेश किया गया है। ग्रन्थ नाम, कर्ता, कर्ता के गुरु, ग्रन्थ का विषय, भाषा, रचना संवत् एवं स्थान, ग्रन्थ के प्रारम्भ का आदिपद, मुद्रित या अप्रकाशित, मुद्रित है तो कहाँ से और अप्रकाशित है तो वह ग्रन्थ किस भण्डार तथा स्थान पर उपलब्ध है इसका प्रामाणिक आलेखन किया गया है।
पूर्व में प्रोफेसर डॉ एच.डी. वेल्हणकर के जिनरत्नकोष, मोहनलाल द. देसाई के जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास और जैन गुर्जर कविओ तथा हीरालाल रसिकदास कापड़िया के जैन संस्कृत साहित्य का इतिहास आदि ग्रन्थ प्रकाशित हुए है, वे अपनी-अपनी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है किन्तु कई दृष्टियों से इस ग्रन्थ का विशेष महत्व है। इस प्रकार का साहित्य कोश किसी गच्छ का प्रकाशित नहीं हुआ है। यह कोश वास्तव में अनुपम है।
समस्त गच्छों के परम्परा धारक आचार्यों और विद्वानों से हमारा साग्रह अनुरोध है कि गच्छों का इतिहास इस प्रकार से इतिहास , पुरातत्त्व और साहित्य कोश की दृष्टि से निर्माण कर प्रकाशित करें।
विनयसागरजी के ये तीनों ग्रन्थ खरतरगच्छ के लिए चिरकाल तक दीपस्तम्भ की तरह मार्ग दर्शक होंगे इसमें हमें तनिक भी संदेह नहीं है। डॉ० कमलचन्दजी सोगानी की दृष्टि में इनके ये तीनों ग्रन्थ असाधारण वैदुष्य के परिचायक हैं और ये तीनों ही अमर कृतियाँ हैं।
हम इनसे यह भी अनुरोध करेंगे कि इसी प्रकार ग्रन्थ प्रशस्तियों और लेखन प्रशस्तियों के आधार पर खरतरगच्छ के उपासकों का परिचय भी वे अवश्य लिखें। शासन और धर्म की प्रभावना करने में इस श्रेष्ठियों का भी कम प्रभाव नहीं रहा है। भारत के कई प्रदेशों में कई उपासक तो दीवान रहे हैं, सेनापति रहे हैं, कोषाध्यक्ष रहे हैं, कई पदों पर राज्याधिकारी रहे हैं और कई जागीरदार रहे हैं अतः उनके व्यक्तित्व, कृतित्व और धार्मिक कार्य-कलापों का भी वर्णन पढ़कर भावी पीढ़ी भी उसका अनुसरण कर सके।
जीवेमः शरदः शतम् की सूक्ति के आलोक में विनयसागरजी दीर्घायुषी हों और स्वस्थ रहकर माँ सरस्वती के भण्डार की अभिवृद्धि करते रहें यही हमारी शुभकामना है और इस असाधारण परिश्रम के लिए भूरि-भूरि बधाई भी है।
अनुसंधित्सु विद्वानों के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा।
मंजुल जैन मैनेजिंग ट्रस्टी एम०एस०पी०एस०जी० चेरिटेबल ट्रस्ट जयपुर
देवेन्द्र राज मेहता
संस्थापक प्राकृत भारती अकादमी
जयपुर
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