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३६००. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, वीर जिन स्तवन (क्षत्रियकुंड ), गीत स्तवन, राजस्थानी, १९वीं, ‘आदि-सो प्रभु मेरे वीर जिणंद जयो... गा. ५', अ., ह. विनय प्रतिलिपि ३६०१. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, शान्ति जिन नमस्कार, गीत स्तवन, राजस्थानी, १९वीं, 'आदि-सोलम जिनवर शांतिनाथ... गा. ३', अ., ह. विनय प्रतिलिपि
३६०२. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, शीतल जिन स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १८२७ सूरत, 'आदि-भवि तुम्हे वंदो रे शीतल जिनपति रे... गा. ११', अ., ह. विनय. प्रतिलिपि, मु., बृहत्स्तवनावली, पृ. ४७
३६०३. क्षमा कल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, संभवजिन प्रतिष्ठा स्त. अजीमगंज, गीत स्तवन, राजस्थानी, १८६९ अजमेर, अ.
३६०४. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, संभवजिन प्रतिष्ठा स्त. अजीमगंज, गीत स्तवन, राजस्थानी, १८४४ अजीमगंज, अ., ह. खरतरगच्छ ज्ञान भं., जयपुर
३६०५. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, संभव जिन स्तवन ( देसणोक), गीत स्तवन, राजस्थानी, १९वीं, ‘आदि-श्री संभव जिनरायजी... गा. ५', अ., ह. विनय प्रतिलिपि ३६०६. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, संभव जिन स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १९वीं, 'आदि-श्रीसंभव जिनरायजी... गा. ७', अ., ह. विनय प्रतिलिपि
३६०७. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, संभव जिन स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १८४४, 'आदि-श्री संभव जिनराया... गा. ७', अ., ह. विनय प्रतिलिपि
३६०८. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, सम्मेतशिखर जिन नमस्कार, गीत स्तवन, राजस्थानी, १९वीं, ‘आदि-पूरव देसैं दीपतौ ... गा. ३', अ., ह. विनय प्रतिलिपि
३६०९. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, सम्मेतशिखर जिन स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १८४३, ‘आदि–सम्मेतशिखर सुहामणो रे जो ज्यो... गा. ७', अ., ह. विनय. प्रतिलिपि ३६१०. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, सम्मेतशिखर जिन स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १८४३, ‘आदि–सहियां आपे अइये... गा. ७', अ., ह. विनय प्रतिलिपि
३६११. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, साधु सजझाय, सज्झाय, राजस्थानी, 'आदि-आज आणंद मुझ अति घणौरे... गा. ५', अ., ह. रा. प्रा. वि.प्र., जोधपुर ३१२२५ (३२६)
३६१२. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, सिद्धचक्र नमस्कार, गीत स्तवन, राजस्थानी, १९वीं, 'आदि-श्री अरिहंत उदार कांति... गा. ६', अ., ह. विनय प्रतिलिपि
३६१३. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, सिद्धचक्र स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १९वीं, ' आदि - तीरथनायक जिनवरुजी... गा. ५', अ., ह. विनय प्रतिलिपि
३६१४. क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, सिद्धचक्र स्तवन, गीत स्तवन, राजस्थानी, १९वीं, 'आदि-धर नवपद से रङ्ग मेरे गा. ४', अ., ह. विनय प्रतिलिपि
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