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________________ २८२८. समस्यापूर्तिस्फुटपद्याः, धर्मवर्द्धन उ० / विजयहर्ष उ०, काव्य, संस्कृत, १८वीं, 'आदि गीर्वीणा तंत्रिकैका वरचिबुकसृता... गा. ३६', मु., धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली, पृ. ३८४ २८२९. समस्या महिम्न स्तोत्र, जिनवर्द्धनसूरि / जिनराजसूरि पिप्पलक, स्तोत्र, संस्कृत, १५वीं, अ., ह. हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा ५१९ २८३०. समस्याष्टकम्, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, काव्य, संस्कृत, १७वीं, 'आदि प्रभुस्नात्रकृते देवा..., अन्त-परस्परं बुधोल्लापे...', मु., समयसुन्दर कृति कुसुमाञ्जलि, पृ. ४९७ २८३१. समाचारी, जिनपतिसूरि / मणिधारी जिनचन्द्रसूरि, विधि, संस्कृत, १३वीं,अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर २८३२. समाचारी, परमानन्द / अभयदेवसूरि, विधि, प्राकृत, १२वीं, 'आदि-नमिउण महावीरं..., अन्त–गरुगए दुकरवासो...', अ. २८३३. समाचारीशतक, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, विधि, संस्कृत, १६७२ मेड़ता, 'आदि-श्रीवीरं च गुरुं नत्वा..., अन्त–सामाचारी शतकमिदमासूचित...', मु., जिनदत्तसूरि ज्ञान भं., सूरत, ह. हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा २८३४. समुद्रप्रकाश, जिनसमुद्रसूरि / जिनचन्द्रसूरि बेगड़,?, राजस्थानी, १८वीं, अ., ह. जिनभद्रसूरि __ ज्ञान भं., जैसलमेर २८३५. समुद्रबद्धचित्रकाव्य, दुर्गादास / विनयाणंद, काव्य, राजस्थानी, १७८० कर्णगिरि, अ., ह. बालचन्द संग्रह रा.प्रा.वि.प्र., चित्तौड़ २८३६. संबोध अष्टोत्तरी, ज्ञानसारोपाध्याय / रत्नराज उ०, गीत स्तवन, राजस्थानी, १९वीं, आदि अरिहंत सिद्ध अनंत..., अन्त-स्वारथ तणो सनेह...', मु., ज्ञानसार ग्रन्थावली, पृ. १९३ २८३७. संबोधसप्तति टीका, गुणविनयोपाध्याय / जयसोम उ०, प्रकरण, संस्कृत, १६५१, आदि प्रणिपत्य सत्यकीर्ति..., अन्त-शिष्यपरिवारलब्धमुदः...', अ., ह. विनय. प्रतिलिपि, कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा १३१७९ २८३८. सम्बोधसप्तति बालावबोध, मेरुसुन्दरोपाध्याय / रत्नमूर्ति उ०, प्रकरण, राजस्थानी, १६वीं, आदि वंदिय पास जिणंद...', अ., ह. जिनभद्रसूरि ज्ञान भं., जैसलमेर, खरतरगच्छ ज्ञान भं., जयपुर २८३९. संबोधसप्तति (रत्नशेखरीय) हिन्दी अनुवाद, वल्लभश्री प्र. / ज्ञानश्री, प्रकरण, हिन्दी, १९८६ अहमदाबाद, आदि-शिवश्रीवल्लभः श्रीमान्..., अन्त-स्वस्ति श्री स्याद्वादमय...', अ., ह. हरिसागरसूरि ज्ञान भं., लोहावट २८४०. सम्भवनाथ स्तोत्र, मेरुसुन्दरोपाध्याय / रत्नमूर्ति उ०, स्तोत्र, संस्कृत, १६वीं, अ., ह. विनय. प्रतिलिपि २८४१. सम्मेतशिखर रास, बालचन्द्रोपाध्याय (विजयविमल) / अमृतसमुद्रगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १९०७ अजीमगंज, 'आदि-वांदी वीस जिनेसरु..., अन्त-खरतरगच्छपति महिमाधारी...', मु., बृहद् स्तवनावली, पृ. १८३, ह. अभय ग्र., बीकानेर खरतरगच्छ साहित्य कोश 213 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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