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२३७७. विचारषट्त्रिंशिका बालावबोध, विमलकीर्त्तिगणि / विमलतिलकगणि, प्रकरणं, राजस्थानी,
__१७वीं, अ., ह. चारित्र रा.प्रा.वि.प्र., बीकानेर २३७८. विचारषट्त्रिंशिका स्तबक, भुवनकीर्त्ति उ० / ज्ञानमन्दिर उ०, प्रकरण, राजस्थानी, १७वीं
१८वीं, अ., ह. कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा ९४१२ २३७९ विचारषट्त्रिंशिका अर्थ, ज्ञानसारोपाध्याय / रत्नराज, प्रकरण, राजस्थानी, १९वीं, अ., ह.
खरतरगच्छ ज्ञान भं., जयपुर २३८०. विचारषट्त्रिंशिका यन्त्र, सुमतिवर्द्धनगणि / विनीतसुन्दर, प्रकरण, राजस्थानी, १९वीं, अ
खरतरगच्छ ज्ञान भं., जयपुर, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा २३८१. विचारषट्त्रिंशिका प्रश्नोत्तर, जिनसमुद्रसूरि / जिनचन्द्रसूरि बेगड़, प्रकरण, राजस्थानी,
१७२४, अ., ह. विनयचन्द्र ज्ञान भं., जयपुर २३८२. विचारषट्त्रिंशिका स्वोपज्ञ अर्थसह, हीरकलशोपाध्याय / हर्षप्रभ उ०, प्रकरण, प्राकृत
राजस्थानी, १७वीं, अ., ह. नाहर संग्रह, कलकत्ता २३८३. विचारादि, रामचन्द्रगणि / शिवचन्द्रोपाध्याय, प्रश्नोत्तर, राजस्थानी, १९वीं, अ. २३८४. विचारसार ग्रन्थ (गुणस्थानशतक), देवचन्द्रोपाध्याय / दीपचन्द्र उ०, प्रकरण, प्राकृत,
१८वीं, आदि-नमियजिणं गुणठाणे..., अन्त-भंगा संवेहाओ...', मु., अध्यात्म ज्ञान प्रसारक
मण्डल २३८५. विचारसार ग्रन्थ स्वोपज्ञ टीका, देवचन्द्रोपाध्याय / दीपचन्द्र उ०, प्रकरण, संस्कृत, १८वीं,
'आदि-श्रीनाभेय जिनंनत्वा..., अन्त–श्रीवर्द्धमानायगौतमाय...', मु., अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मण्डल २३८६. विचारसार ग्रन्थ स्वोपज्ञ स्तबक, देवचन्द्रोपाध्याय / दीपचन्द्र उ०, प्रकरण, राजस्थानी,
१८वीं, 'आदि-प्रणम्यशासनाधीशं...', मु., अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मण्डल २३८७. विचारसार प्रकरण, देवचन्द्रोपाध्याय / दीपचन्द्र उ०, प्रकरण, प्राकृत, १७९६, 'आदि
पणमिउं वीरजिणंद..., अन्त–जाजिणवाणीविजयइ... गा. २१३', मु., अध्यात्म ज्ञान प्रसारक
मण्डल २३८८. विचारसार प्रकरण स्वोपज्ञ टीका सह, देवचन्द्रोपाध्याय / दीपचन्द्र उ०, प्रकरण, संस्कृत
राजस्थानी, १८वीं, 'आदि-श्रीवर्द्धमानमानम्य..., अन्त-जयतात्सच्चिदानंद...', मु., अध्यात्म
ज्ञान प्रसारक मण्डल २३८९. विचारसार स्तबक, देवचन्द्रोपाध्याय / दीपचन्द्र उ०, प्रकरण, राजस्थानी, १७९६ नवानगर,
'आदि-प्रणम्य श्री महावीरं...', मु., अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मण्डल २३९०. विचारसार प्रकरण स्वोपज्ञ टीकासह, देवचन्द्रोपाध्याय / दीपचन्द्र उ०, प्रकरण, संस्कृत
प्राकृत, १८वीं, 'मूल का अन्त भंगा संवेहाओ... गा. १०७', 'टीका का अन्त-नमः श्रीवर्द्धमानाय...', मु., अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मण्डल, पादरा
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खरतरगच्छ साहित्य कोश
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