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२३२३. वनस्पति सचित्ता चित्त विचार, रामचन्द्रगणि / शिवचन्द्र उ०, प्रकरण, हिन्दी, १९वीं, अ., ह. सदागम ट्रस्ट, कोडाय
२३२४. वन्दनकभाष्यम्, अभयदेवसूरि / जिनेश्वरसूरि, विधि, प्राकृत, १२वीं, 'आदि–इच्छा य अणुन्नवणा..., अन्त - एवं विणओववेओ...', मु., सिरिपयरणसंदोह, ह. ज्ञान भं., पाटण २३२५. वन्दनस्थानविवरण, जिनप्रभसूरि / जिनसिंहसूरि, विधि, संस्कृत, १४वीं, अ., ह. संघ भण्डार पाटण, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा
२३२६. वयरस्वामी चौपई, जयसोमोपाध्याय / प्रमोदमाणिक्य उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १६५९ जोधपुर, ‘आदि-वर्द्धमान जिनवर वरदाइ ..., अन्त - आवश्यक अनुसारि...', अ., ह. खजांची संग्रह, बीकानेर, दानसागर बड़ा ज्ञान भं., बीकानेर
२३२७. वयरस्वामी चौपई, जिनहर्षगणि / शान्तिहर्षगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७५९, 'आदिअरध भरतमांहि शोभतोरे..., अन्त - सत्तरसइ नव पंचासईरे...', अ., ह. धरणेन्द्रसूरि संग्रह, जयपुर, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा
२३२८. वयरस्वामी रास, जयसागरोपाध्याय / जिनराजसूरि, रास चौपई, अपभ्रंश, १४८९ 'जूनागढ़, 'आदि-जूनईगढ़ी श्रीनेमिपसाई...', अ., ह. विनय प्रतिलिपि
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२३२९. वर्द्धमान जिनेश्वरसूर्यादिसुगुरु स्तुति, लब्धिमुनि उ० / राजमुनि, स्तोत्र, संस्कृत, २०वीं२१वीं, 'आदि-पायाद्भवत्खरतरामल... गा. ६', मु., , लब्धि कृतिसन्दोह, पृ. ५८, जिनदत्तसूरि ज्ञान भं., बम्बई
२३३०. वर्द्धमान देशना, राजकीर्त्ति उ० / रत्नलाभ, उपदेश, संस्कृत, १७वीं, ‘आदि-नमः श्री पार्श्वनाथाय, अन्त - श्रीबृहत्खरतरगच्छे श्री जिनभद्रसूरे...', मु., हीरालाल हंसराज, जामनगर २३३१. वर्द्धमान विद्यापट्ट, भक्तिलाभोपाध्याय / रत्नचन्द्र, मन्त्रशास्त्र, प्राकृत- संस्कृत, १६वीं, अ., बीकानेर
ह. अभय ग्र.,
२३३२. वर्द्धमान विद्यापट्ट कल्प, जिनप्रभसूरि / जिनसिंहसूरि, मन्त्रशास्त्र, प्राकृत- संस्कृत, १४वीं, मु., डाय्याभाई मोहोकमलाल, अहमदाबाद
२३३३. वर्द्धमान विद्यापट्ट कल्प, संघतिलकसूरि / गुणशेखरसूरि रुद्रपल्लीय, मन्त्रशास्त्र, संस्कृत, १५वीं, मु.
२३३४. वर्द्धमान विद्या स्तव, जिनप्रभसूरि / जिनसिंहसूरि, स्तोत्र, प्राकृत, १४वीं, 'आदि-आसि किलठुत्तरसय... गा. १७', अ., ह. विनय प्रतिलिपि, वर्द्धमान विद्याकल्प, पृ. २१
२३३५.
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वर्द्धमानसूर आदि प्राकृत प्रबन्ध, राजहंस / हर्षतिलक लघुखरतर, गुर्वावली, प्राकृत, १६वीं, अ., ह. हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा १३८३
२३३६. वल्कलचीरी रास, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १६८१ जैसलमेर, 'आदि- प्रणमुं पारसनाथ न..., अन्त - श्रीवलकल रे चीरी साधु...', मु., समयसुन्दर रास पंचक, ह. हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा, बालचन्द्र संग्रह रा.प्रा.वि.प्र., चित्तौड़
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खरतरगच्छ साहित्य कोश
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