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२१६२. मेघदूत टीका, क्षेमहंसगणि / जिनभद्रसूरि, काव्य, संस्कृत, १५वीं, अ., ह. विनय. प्रतिलिपि २१६३. मेघदूत टीका पंजिका, गुणरत्नोपाध्याय / विनयसमुद्र उ०, काव्य, संस्कृत, १७वीं, अ:, ह.
मोहनलालजी म. भं., सूरत २१६४. मेघदूत टीका, चारित्रवर्द्धन उ० / कल्याणराज उ०, काव्य, संस्कृत, १६वीं, अ., ह. विनय. प्रतिलिपि २१६५. मेघदूत टीका, महिमसिंह (मानसिंह) / शिवनिधानोपाध्याय, काव्य, संस्कृत, १६९३,
अ., ह. चारित्र रा.प्रा.वि.प्र., बीकानेर २१६६. मेघदूत टीका, विनयचन्द्रगणि / समयमूर्ति वा. सागरचन्द्र शाखा, काव्य, संस्कृत, १६६४
राडद्रह, अ. २१६७. मेघदूत टीका, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, काव्य, संस्कृत, १७वीं, अ., ह.
विश्वेशरानन्द शोध संस्थान, होशियारपुर २१६८. मेघदूत टीका, सुमतिविजय उ० / विनयमेरु उ०, काव्य, संस्कृत, १८वीं, अ., ह. भांडारक
ओरियन्टल इन्स्टीट्यूट, पूना .. २१६९. मेघदूत अवचूरि, कनककीर्त्ति उ० / जयमन्दिरगणि, काव्य, संस्कृत, १७वीं, अ., ह.
विनय. प्रतिलिपि, चारित्र रा.प्रा.वि.प्र., बीकानेर २१७०. मेघदूत प्रथमपद्यस्य त्रयोऽर्थ, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, काव्य, संस्कृत,
१७वीं, 'आदि-श्रीकालिदासकृतमेघदूतकाव्यप्रथमवृत्तस्य... मूलार्थमपहाय व्याख्या क्रियते...,
अन्त-कश्चित्कान्तेति काव्यस्य...', मु. अनुसंधान अंक ३२, अहमदाबाद २१७१. मेघमाला चौपई, सूरचन्द्रोपाध्याय / वीरकलश उ०, वर्षा विज्ञान, प्राकृत-राजस्थानी, १७वीं,
'आदि–तियसिंद नरिन्द नयं..., अन्त-सूरचन्द इणिभणइ धमरइ.सम्पद गेह...', अ., ह.
सागरचन्दसूरि-पार्श्वचन्द्रगच्छ ज्ञान भं., खम्भात, जिनभद्रसूरि ज्ञान भं., जैसलमेर २१७२. मेतार्य ऋषि चौपई, उदयहर्ष / हीरराज, रास चौपई, राजस्थानी, १७०८ भटनेर, 'अन्त–जे
___ नरनारी भावसुं रे...', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर २१७३. मेतार्य ऋषि चौपई, क्षेमराजोपाध्याय / सोमध्वजगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १६वीं, अ.,
ह. कान्तिसागरजी संग्रह २१७४. मेतार्य ऋषि चौपई, महिमसिंह (मानसिंह) / शिवनिधान उ०, रास चौपई, राजस्थानी,
१६७० पुष्कर, आदि–विदुर लोक सुखदायिनी..., अन्त–जे साधु गुण मनि सांभली...', अ.,
उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-३, पृ. ६९४, १५०८ २१७५. मेतार्य मुनि चौपई, अमरविजयगणि / उदयतिलक उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १७८६
सरसा, अ., ह. जयचन्द संग्रह, बीकानेर २१७६. मोती कपासिया छन्द, श्रीसारोपाध्याय / रत्नहर्ष उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १६८९
फलौदी, 'आदि-सुंदर रूप सोहामणो..., अन्त–संप हुओ मोती कपारिये...', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर, क्षमाकल्याण संग्रह, बीकानेर
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खरतरगच्छ साहित्य कोश
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