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२१२१. माधवानल कामकंदला रास, कुशललाभ उ० / अभयधर्म उ०, रास चौपई, राजस्थानी,
१६१६ जैसलमेर, 'आदि-देव सरसति देव सरसति सुमति..., अन्त-कुशललाभ वाचक
कहई... ६६३', मु., आनन्द काव्य महोदधि भाग-७ । २१२२. मानतुङ्ग प्रसाद २४ जिन स्तव, जिनपद्मसूरि / जिनकुशलसूरि, स्तोत, प्राकृत, १४वीं,
'आदि-जगमण्डणु गुणपवरं... गा. २६', अ., ह. विजय धर्मलक्ष्मी ज्ञान मन्दिर, आगरा २१२३. मानतुङ्ग मानवती चौपई, अभयसोमगणि / सोमसुन्दरगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७२७,
'आदि-प्रणमुं माता सरसति..., अन्त-संवत सतरे सतावीसै...', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर,
चारित्र रा.प्रा.वि.प्र., बीकानेर, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा २१२४. मानतुङ्ग मानवती चौपई, जिनसुन्दरसूरि बेगड़ / जिनसमुद्रसूरि, रास चौपई, राजस्थानी,
१७५० मरुधर, अ., ह. जैनरत्न पुस्तकालय, जोधपुर २१२५. मानतुङ्ग मानवती रास, पुण्यविलासगणि / पुण्यचन्द्रगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७८०
लूणकरणसर, 'आदि-नमुं सदा नितमेव..., अन्त–सत्य वचन फल तुमे जोइज्यो...', अ., ह.
विनयचन्द ज्ञान भं., जयपुर २१२६. मानमनोहर, कल्याणचन्द्रगणि / कीर्त्तिरत्नसूरि, काव्य, संस्कृत, १५१२, अ. २१२७. मालापिंगल, ज्ञानसारोपाध्याय / रत्नराज उ०, छन्द शास्त्र, राजस्थानी, १८७६ बीकानेर, आदि
श्री अरिहंत सुसिद्ध पद..., अन्त-परि समाप्ति ग्रन्थ भई...', मु., ज्ञानसार ग्रन्थावली, पृ. २४७ २१२८. मुनिपति चौपईं, धर्ममन्दिर वा. / दयाकुशल वा., रास चौपई, राजस्थानी, १७२५ पाटण,
'आदि-श्री संखेश्वर सुखकरु..., अन्त–चौपाइ कीधी चूपसुं...', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर,
सेठिया लाइब्रेरी, बीकानेर, विनय. प्रतिलिपि २१२९. मुनिपति चौपई, नयरङ्ग वा. / गुणशेखर वा., रास चौपई, राजस्थानी, १६१५, अ., ह.
जिनभद्रसूरि ज्ञान भं., जैसलमेर २१३०. मुनिपति चौपई, हीरकलशोपाध्याय / हर्षप्रभ उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १६१८ बीकानेर,
'आदि-जिन चउवीस पय नमी..., अन्त–वीर जिणेसर तित्थवइ...', अ., ह. कैलाशसागरसूरि
ज्ञान मन्दिर, कोबा ८१६, रा.प्रा.वि.प्र., जयपुर . २१३१. मुनिमालिका (साधुवंदना), चारित्रसिंहगणि / मतिभद्रगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १६३६
रिणी, 'आदि–रिषभ प्रमुख जिन पायजुग..., अन्त–संवत सोल छतीस ए...', अ., ह. अभय
ग्र., बीकानेर, क्षमाकल्याण संग्रह, बीकानेर २१३२. मुनिमालिका, पुण्यसागरोपाध्याय / जिनहंससूरि, रास चौपई, राजस्थानी, १७वीं, अ., ह.
अभय ग्र., बीकानेर २१३३. मुनिसुव्रतचरित्र महाकाव्य, पद्मप्रभसूरि / विबुधप्रभसूरि अभयदेवसूरि सन्तानिय, महाकाव्य,
संस्कृत, १२९४, आदि-परमेष्ठी चतुर्वक्त्रः..., अन्त–पूर्वं चन्द्रकुले बभूव विपुले...', अ., ह. जिनभद्रसूरि ज्ञान भं., जैसलमेर २५६
खरतरगच्छ साहित्य कोश
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