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२०५३. महावीर चरित्र (दुरियरय.), जिनवल्लभसूरि / अभयदेवसूरि, कथा चरित्र, प्राकृत, १२वीं,
_ 'आदि-दुरियरयसमीरं मोहपंकोहनीरं..., अन्त-एवं वीरजिणे दिणेसर... गा. ४४', मु.
जिनवल्लभसूरि ग्रन्थावली, पृ. १६१ २०५४. महावीर चरित्र (दुरियरय.) टीका, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, कथा चरित्र,
संस्कृत, १७वीं; 'आदि-नत्वा वीर जिनेन्द्रं..., अन्त-श्रीजिनचन्द्रगणाधिपाः..., ह. विनय.
प्रतिलिपि, मु., जिनदत्तसूरि ज्ञान भं., सूरत २०५५. महावीर चरित्र (दुरियरय.) टीका, साधुसोमोपाध्याय / सिद्धान्तरुचि उ०, कथा चरित्र,
संस्कृत, १६वीं, 'आदि-वर्द्धयतु वर्द्धमान..., अन्त–सदा वल्लभे जायतामिति..., अ., ह.
कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा २११६ २०५६. महावीर चरित्र वार्ता (दुरियरय.) टीका, कमललाभ उ० / अभयसुन्दरोपाध्याय, कथा
___चरित्र, राजस्थानी, १७वीं, आदि-नत्त्वा श्री मन्महावीरं..., अन्त इति श्री वीरस्तवस्यार्थो...', अ. २०५७. महावीर चरित्र (दुरियरय.) बालावबोध, विमलरत्नगणि/विमलकीर्तिगणि, कथा चरित्र,
राजस्थानी, १७०२ सत्यनगर, अ., ह. खजांची संग्रह रा.प्रा.वि.प्र., बीकानेर २०५८. महावीर चरित्र, देवभद्रसूरि (गुणचन्द्रगणि) / सुमतिवाचक, कथा चरित्र, प्राकृत, ११३९,
‘पयडिय समस्य परमत्थवित्थरं..., अन्त-इयसुक्कज्झाणा...', मु., देवचन्द लालभाई पु. फण्ड,
सूरत २०५९. महावीर जीवन प्रभा, वीरपुत्र आनन्दसागरसूरि / त्रैलोक्यसागर, कथा चरित्र, हिन्दी,
२१वीं, मु., आनन्दसागर ज्ञान भं., सैलाना २०६०. महावीर २७ भव कथानक, रङ्गकुशलगणि / कनकसोमगणि, कथा चरित्र, राजस्थानी,
१६७०, अ., ह. आचार्यशाखा भं., बीकानेर, उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-३, पृ. ७७९ . २०६१. महावीर २७ भव कथानक, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, कथा चरित्र, संस्कृत,
१७वीं, अ. २०६२. महावीर २७ भव कथानक बालावबोध, रत्ननिधानोपाध्याय / जिनचन्द्रसूरि, कथा चरित्र,
राजस्थानी, १७वीं, अ., ह. आचार्यशाखा ज्ञान भं., बीकानेर २०६३. महावीर रास, अभयतिलकोपाध्याय / जिनेश्वरसूरि द्वि., रास चौपई, अपभ्रंश, १३०७,
'आदि-पासनाह जिणदत्त गुरो..., अन्त-हेम घयदंड कलसो तहि कारिउ...', अ. २०६४. महावीर विज्ञप्ति, जयसागरोपाध्याय / जिनराजसूरि, स्तोत्र, अपभ्रंश, १५वीं, 'आदि-जय
जय वीर जिणेसर देव... गा. १६', अ., ह. पुण्यविजय संग्रह, अहमदाबाद ३४२० (१७),
विनय. प्रतिलिपि ४१६ (१९) २०६५. महावीर विज्ञप्तिका, जिनवल्लभसूरि / अभयदेवसूरि, स्तोत्र, प्राकृत, १२वीं, 'आदि
सुनरवइकयवंदण..., अन्त–तुह आणारत्तेणं... गा. १२', मु., जिनवल्लभसूरि ग्रन्थावली, पृ. २१२
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