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________________ १०३२. ज्ञानपंचमी स्तोत्र, स्तोत्र, प्राकृत, आदि-श्रीनेमि जिणेसर पणय सुरेसर..., अन्त–इय सुअनाण: भुवण पहाणः... गा. ९', अ., ह. हर्षचन्द्र पार्श्वचन्द्रगच्छ भं., खम्भात, पृ. ४२७ १०३३. ज्ञानपंचमी स्तोत्र, जिनसमुद्रसूरि / जिनचन्द्रसूरि, स्तोत्र, संस्कृत, १८वीं, 'गा. १२', अ. १०३४. ज्ञान बहुमान नमस्कार भाषा, देवचन्द्रोपाध्याय / दीपचन्द्र उ०, स्तुति, राजस्थानी, १८वीं, अ. १०३५. ज्ञानसार टीका ज्ञानमुञ्जरी (मूल यशोविजय उ०), देवचन्द्रोपाध्याय / दीपचन्द्र उ०, उपदेश, संस्कृत, १७९६ नवानगर, 'आदि-श्रीपाश्वेशं जिनं नत्वा..., अन्त-नम: स्याद्वादरूपाय...', मु., श्रीमद् देवचन्द्र, अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मण्डल, पादरा १०३६. ज्ञानसार हिन्दी पद्यानुवाद एवं अनुवाद, मणिप्रभसागर गणि / जिनकांतिसागरसूरि, उपदेश, हिन्दी, २०४८ पूना, आदि-बन ऐन्द्र सुख्ख में मग्न..., अन्त–ज्ञानसार जो आत्मसार है...', मु., प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर १०३७. ज्ञानसुखड़ी, धर्मचन्द्रगणि / पद्मचन्द्र बेगड़, उपदेश, राजस्थानी, १७६७ थट्टा, आदि-श्रीगुरु ज्ञानीसुं कयो..., अन्त-धर्मचंद्र नित आइये ज्ञानसूखडी ग्रन्थ...', भुवन-बड़ा ज्ञान भं., बीकानेर, अ., ह. सेठिया लाइब्रेरी, बीकानेर १०३८. ज्ञानानन्दप्रकाश, पुण्यशीलगणि / रामविजय उ०, काव्य, संस्कृत, १९वीं, अ., बालचन्द संग्रह रा.प्रा.वि.प्र., चित्तौड़ १०३९. ज्ञानार्णव भाषा, लब्धितिलकोपाध्याय / लब्धिरङ्ग उ०, प्रकरण, राजस्थानी, १७२८, अ., ह. ज्ञान भं., फतहपुर १०४०. ढंढणकुमार चौपई, रत्नलाभोपाध्याय / क्षमारङ्गगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १६५६ जयतारण, 'अन्त-संवत सोल छपन्ना सावणइ...', अ., उ. जैन गुर्जर कविओ, भाग-३, पृ. ८९१ १०४१. ढंढणकुमार रास, लावण्यसिंह वा. / उदयपद्म उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १५५८ ?, ___ 'अन्त-खरतरगच्छि गुरु गुणनिलउ...', अ., उ. जैन गुर्जर कविओ, भाग-३, पृ. ५२९ १०४२. ढुंढक मतोत्पत्ति रास, लक्ष्मीविनयोपाध्याय / अभयमाणिक्य उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १८वीं, अ., उ. जैन गुर्जर कविओ, भाग-२, पृ. ४५८ १०४३. ढुंढकरास, हेमविलास / ज्ञानकीर्त्ति, रास चौपई, राजस्थानी, १६७९ कुचेरा, आदि-सरसति माता समरि करि..., अन्त–ग्यानकीरत गुरु आज्ञान दीनी हेमविलास मुनि रचना कीनी...', अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर १०४४. ढोला मारवाण चौपई, कुशललाभ उ० / अभयधर्म उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १६१७ जैसलमेर, 'आदि-सकल सुरासुर सामंणी..., अन्त–ढोरा मारु वात...', मु., आनन्द काव्य ___महोदधि, भाग-७ १०४५. तत्त्वचिन्तामणि टिप्पणक, सुमतिसागर उ० / पुण्यप्रधान उ०, न्याय, संस्कृत, १७वीं, अ., उ. देवचन्द्र विचारसार टीका खरतरगच्छ साहित्य कोश 81 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016106
Book TitleKhartargaccha Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size14 MB
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