________________
९१०. जिनकृपाचन्द्रसूरिचरित, जिनजयसागरसूरि / जिनकृपाचन्द्रसूरि, काव्य, संस्कृत, २०वीं,
मु., जिनकृपाचन्द्रसूरि ज्ञान भं., इन्दौर ९११. जिनगुणप्रभसूरि प्रबन्ध (गुर्वावली गीत), जिनेश्वरसूरि / जिनगुणप्रभसूरि बेगड़,
ऐतिहासिक गीत, राजस्थानी, १७वीं, 'आदि-मन धरि सरस्वती स्वामिणी... गा. ६१', मु.,
ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ. ४३२, ह. जिनभद्रसूरि ज्ञान भं., जैसलमेर गुटका नं. ४१६ ९१२. जिनचतुष्पदिका, मोदमन्दिर / जिनेश्वरसूरि, रास चौपई, अपभ्रंश, १४वीं, अ., ह. अभय ग्र.,
बीकानेर ९१३. जिनचन्द्रसूरि चच्चरी (जिनप्रबोधीय), हेमभूषणगणि / जिनप्रबोधसूरि, उपदेश, अपभ्रंश,
१४वीं, अ., ह. अभय ग्र., बीकानेर ९१४. जिनचन्द्रसूरिचरित मणिधारी, लब्धिमुनि उ० / राजमुनि, काव्य, संस्कृत, २०वीं-२१वीं, आदि
प्रणम्य श्रीमहावीरं चरितं..., अन्त–महेन्द्रसूर्यप्रतिशुद्धदीक्षः श्रीमहोनाख्यः सुमुनिस्ततश्च....', मु.,
मणिधारी श्रीजिनचन्द्रसूरि अष्टम् शताब्दी स्मृति-ग्रन्थ, दिल्ली, पृ. ७५-८२ ९१५. जिनचन्द्रसूरिचरित युगप्रधान, लब्धिमुनि उ० / राजमुनि, काव्य, संस्कृत, २०वीं, आदि
वन्देहं वीतरागं च..., अन्त-अत्र शाखा प्रशाखाभिः...', मु., अभयचंद सेठ, कलकत्ता ९१६. जिनचन्द्रसूरि पारणक संसूचक सर्वजिन स्तुति, देवमूर्त्ति / जिनेश्वरसूरि, स्तोत्र, संस्कृत,
१४वीं, 'आदि-सार्की द्वादशहेमकोटि... गा. ४', अ., ह. विजय धर्मलक्ष्मी ज्ञान मन्दिर,
आगरा
९१७. जिनचन्द्रसूरि फागु (जिनप्रबोधीय), स्तुति, अपभ्रंश, १४वीं, 'आदि-अरे पणमवि सामिउ
संति, अन्त-सिरि जिणचंदसूरि फागिहि... गा. २५', अ., ह. विनय. प्रतिलिपि ९१८. जिनचन्द्रसूरि प्रशस्ति, गुणविनयोपाध्याय / जयसोम उ०, काव्य, संस्कृत, १७वीं, 'आदि
रङ्गद्वैराग्यवासनातिशयसमादृत...', मु., युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि, पृ. २९३, ह. कैलाशसागरसूरि
ज्ञान मन्दिर, कोबा १२९९५ ९१९. जिनचन्द्रसूरि अकबर प्रतिबोध रास, लब्धिकल्लोल उ० / विमलरङ्ग वा., ऐतिहासिक रास
चौपई, राजस्थानी, १६४८ अहमदाबाद, 'आदि-जिनवर जग गुरु मन धरि..., अन्त-पढ़इ
सुणइ गुरु गुण रसीए...', मु., ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ. ५८ ९२०. जिनतिलकसूरि स्तुति भावहर्षीय, जिनोदयसूरि / जिनतिलकसूरि, स्तुति, राजस्थानी,
१७वीं, 'आदि-आपउ मुझ सरसति वचन..., अन्त-सिख साखा गुरु नी पसरउ... गा. १९',
अ., ह. विनय. प्रतिलिपि ९२१. जिनदत्तसूरि चरित, लब्धिमुनि उ० / राजमुनि, काव्य, संस्कृत, २०वीं-२१वीं, 'आदि
यद्धर्मनौकामधुनाध्यवाप्य..., अन्त–जाता आर्य सुधर्माख्य-स्वामि...', अ., विनय. प्रतिलिपि ९२२. जिनदत्तसूरि अष्टक, उदयचन्द्र राजवैद्य / उम्मेददत्तजी राजवैद्य, स्तोत्र, संस्कृत, २०वीं,
आदि-वन्दे सूरिवरं... गा. ८', मु., दादागुरु भजनावली, पृ. १२
72
खरतरगच्छ साहित्य कोश
For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org