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८६९. जयतिहुअण स्तोत्र टीका, समयसुन्दरोपाध्याय / सकलचन्द्रगणि, स्तोत्र, संस्कृत, १६८७
पत्तन, 'आदि-जयतिहुअणेतयवृत्तिं..., अन्त–श्रीमत्खरतरगच्छे...', मु. जिनदत्तसूरि ज्ञान भं.,
सूरत, कैलाशसागरसूरि ज्ञान मन्दिर, कोबा १३६७८ ८७०. जयतिहुअण स्तोत्र बालावबोध, गुणविनयोपाध्याय / जयसोम उ०, स्तोत्र, राजस्थानी
१७वीं, 'आदि-राजसुदर्शनमहानंदकं परमेश्वरे ..., अन्त-श्रीजयसो मोपाध्याय
शिष्यवाचक श्रीगुणविनयैः...', अ., ह. रामचन्द्र-बड़ा ज्ञान भं., बीकानेर, विनय. प्रतिलिपि ८७१. जयतिहुअण स्तोत्र बालावबोध, ज्ञानमेरुगणि / महिमसुन्दर उ०, स्तोत्र, राजस्थानी, १६८१,
अ., ह. रा.प्रा.वि.प्र., जोधपुर २७१२८ स्वयं लिखित ८७२. जयतिहुअण स्तोत्र बालावबोध, मेरुसुन्दरोपाध्याय / रत्नमुर्ति उ०, स्तोत्र, राजस्थानी,
१६वीं, 'आदि-जयति सर्वोक्तर्षेण..., अन्त–मेरुसुन्दर गणिना...', अ., कैलाशसागरसूरि ज्ञान
मन्दिर, कोबा १६२५, जैन भवन, कलकत्ता ८७३. जयतिहुअण स्तोत्र बालावबोध, विमलकीर्त्तिगणि / विमलतिलकगणि, स्तोत्र, राजस्थानी,
१७वीं, अ., ह. चारित्र रा.प्रा.वि.प्र., बीकानेर ८७४. जयतिहुअण स्तोत्र भाषाकाव्य, क्षमाकल्याणोपाध्याय / अमृतधर्म उ०, स्तोत्र, राजस्थानी,
१९वीं महिमापुर 'आदि-परम पुरुष परमेशिता..., अन्त–महिमापुर मंडन जिनराय...', अ.,
उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-३, पृ. १७९ ८७५. जयन्तविजयमहाकाव्य, अभयदेवसूरि / विजयचन्द्रसूरि रुद्रपल्लीय, महाकाव्य, संस्कृत,
१२७८, आदि-श्रेयांसि विश्राणय..., अन्त-आसीश्चन्द्रकुलाम्बराम्बरमणिः श्री वर्धमानप्रभो...',
मु., काव्यमाला गुच्छक ७५, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई ८७६. जयन्ती सन्धि, अभयसोमगणि / सोमसुन्दरगणि, रास चौपई, राजस्थानी, १७२१, आदि
___संति जिणेसर समरी भावइ..., अन्त-भगवती सूत्रइ भाख्यौ एह...', अ., ह. विनय. संग्रह ८७७. जयविजय चौपई, धर्मरत्नगणि / कल्याणधीर उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १६४१, आगरा,
'अन्त-खरतर गच्छि उदार चोपड़ा साखि शृङ्गार...', अ., उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-१,
पृ. २६७ ८७८. जयविजय चौपई, श्रीसारोपाध्याय / रत्नहर्ष उ०, रास चौपई, राजस्थानी, १६८३ जैसलमेर,
'आदि-परता पूरण परगड़उ..., अन्त–इम गणधर गुण गावता रे...', अ., अभय ग्र., बीकानेर,
प्रशस्ति ऐतिहासिक है। ८७९. जयसागरोपाध्याय प्रशस्ति, ?, स्तुति, संस्कृत, १६वीं, 'आदि-संवत १५११ वर्षे श्री जिनराजसूरि
पट्टालङ्कारे...', मु., ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह, पृ. ४०० ८८०. जयसेन चौपई, धर्मसमुद्रगणि / विवेकसिंह उ० पिप्पलक, रास चौपई, राजस्थानी, १६१०
पंचालसा, आदि-पणमिसु गोयम गणहरराय..., अन्त–खरतर खरतर गछि हि राजिउ ए...',अ., ह. विनय. संग्रह, हरिसागरसूरि ज्ञान भं., पालीताणा, उ. जैन गुर्जर कविओ भाग-१, पृ. ११८
खरतरगच्छ साहित्य कोश
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